गिरिडीह : जिले में पारसनाथ पहाड़ियों के पास मंगलवार को बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग इकट्ठा हुए और एक जनसभा की। इस दौरान आदिवासियों ने राज्य सरकार और केंद्र से उनके पवित्र स्थल पारसनाथ पहाड़ी को जैन समुदाय से मुक्त करने का आग्रह किया। साथ ही मांग पूरी नहीं होने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी भी दी।

तीन राज्यों के आदिवासी पहुंचे
झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के हजारों आदिवासी पारंपरिक हथियारों और ढोल नगाड़ों के साथ दिन में पहले ही पहाड़ियों पर पहुंच गए थे। 50 से अधिक निकायों के संगठन होने का दावा करने वाले झारखंड बचाओ मोर्चा के एक सदस्य ने कहा कि ”मारंग बुरु’ (पारसनाथ) झारखंड के आदिवासियों का जन्मसिद्ध अधिकार है और दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें इस अधिकार से वंचित नहीं कर सकती। 

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30 जनवरी को खूंटी जिले में एक दिन का उपवास करेंगे
उन्होंने कहा कि पारसनाथ पहाड़ियों को “बचाने” के आंदोलन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए हजारों आदिवासी 30 जनवरी को खूंटी जिले के उलिहातु में एक दिन का उपवास करेंगे।

वहीं, देशभर के जैन पारसनाथ पहाड़ियों को पर्यटन स्थल के रूप में नामित करने वाली झारखंड सरकार की 2019 की अधिसूचना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। उन्हें डर है कि इससे पर्यटकों का तांता लग जाएगा जो उनके पवित्र स्थल पर मांसाहारी भोजन और शराब का सेवन कर सकते हैं।

जैनियों के विरोध के बाद पारसनाथ पहाड़ियों में पर्यटन को बढ़ावा देने के झारखंड सरकार के कदम पर केंद्र ने रोक लगा दी थी, लेकिन अब आदिवासी समुदाय के लोग इस जमीन पर दावा करने और इसे मुक्त करने की मांग करते हुए मैदान में कूद पड़े हैं। बता दें कि संथाल जनजाति देश की सबसे बड़े अनुसूचित जनजाति समुदाय में से एक है, जिसकी झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में अच्छी खासी आबादी है और ये प्रकृति की पूजा करने वाले लोग हैं।

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