Joharlive Desk
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) बेनामी संपत्ति और बैंक खातों को लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम को चि में लेकर पूछताछ करना चाहता है। सोमवार को उसने उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया था जिसमें उसने बताया था कि पूर्व मंत्री सहित अन्य आरोपियों ने शेल कंपनियों के जरिए 13 देशों में संपत्ति खरीद रखी हैं। लेन-देन का पता लगाने के लिए वह चिदंबरम की रिमांड चाहता है। इस मामले पर आज फिर सुनवाई शुरू हो गई है।
चिदंबरम की तरफ से पेश हुए वकील ने अदालत में जिरह करते हुए कहा कि आरोपी को हिरासत में लेने के लिए ईडी पीठ के पीछे इस तरह बेतरतीब ढंग से दस्तावेजों को अदालत में नहीं रख सकती है। शीर्ष अदालत में चिदंबरम के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि ईडी का कहना है कि एफआईपीबी को 2007 में मंजूरी दी गई। इसका नोट राजस्व विभाग ने 2008 में लिया। एफआईपीबी से 2008 में क्लीयरेंस मिला। उससे पहले कुछ नहीं था। सिंघवी का कहना है कि केस शुरुआत से ही गलत चल रहा है।
अदालत में सिंघवी ने कहा कि एफआईआर के अनुसार 15 मई 2009 को मामला दर्ज हुआ था। 2009 में हीं पीएमएलएल अधिनियम भी शेड्यूल हुआ था। उन्होंने अधिनियम पर बहस करते हुए कहा कि पीएमएलए के अधीन 30 लाख तक की रिश्वत वाले मामले आते हैं। मगर इसमें 10 लाख की रिश्वत के आरोप लगाए हैं। मामले में जो कानून लगाया गया है वह कथित अपराध होने के बाद बना है। यह नीति गलत है। वहीं कपिल सिब्बल ने कहा कि जो पूछताछ हुई है उसकी ट्रांसक्रिप्ट (लिखित ब्यौरा) अदालत के सामने रखी जानी चाहिए। इससे पहले दिसंबर 2018, दिसंबर 2019 में पूछताछ हो चुकी है।