रांची : सदर हास्पिटल सुपरस्पेशियलिटी का विवादों से पुराना नाता रहा है। कभी भवन के खर्च को लेकर तो कभी अव्यवस्था को लेकर हमेशा चर्चा में बना रहता है। और तो और भवन निर्माण में देरी और गड़बड़ियों के कारण तो मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया। लेकिन बेवजह खर्च के मामले ने फिर से सदर हास्पिटल को विवादों में खड़ा कर दिया है। जहां हास्पिटल के नए भवन में पहले फायर सेफ्टी के नाम पर लगभग साढ़े चार करोड़ रुपए फूंक दिए गए। अभी बिल्डिंग पूरी तरह से चालू भी नहीं हुई है कि फिर से फायर सेफ्टी के नाम पर 1.20 करोड़ खर्च किए गए हैं।  ऐसे में सवाल यह उठता है कि फिर से इसकी जरूरत क्यों पड़ी।

पांच महीने पहले पूरा हास्पिटल चालू

अभी पांच महीने पहले ही सदर हास्पिटल का नया भवन 500 से अधिक बेड के साथ पूरी तरह से कंप्लीट होने के बाद मरीजों के लिए खोल दिया गया है। हास्पिटल को पूरा करने में 14 साल लग गए। इस बीच हास्पिटल का निर्माण खर्च भी दोगुना से अधिक पहुंच गया। वहीं, फायर सेफ्टी पर एजेंसी 4.43 करोड़ रुपए खर्च करने का एफिडेविट विजेता कंस्ट्रक्शन ने दिया था, जिसके तहत पूरे हास्पिटल में सेट्रल फायर फाइटिंग के अलावा जगह-जगह फायर एक्सटिंग्विशर भी लगाए गए। मई 2023 में 1.20 करोड़ खर्च करने के बावजूद फायर फाइटिंग सिलेंडर कैंपस में जहां-तहां फेंके पड़े हैं।

पिछले महीने मिला फायर एनओसी

सोशल मीडिया पर फायर फाइटिंग विभाग का एक लेटर वायरल हुआ है, जिसमें पिछले महीने सदर हास्पिटल के नए भवन को फायर सेफ्टी एनओसी का सर्टिफिकेट दिया गया है। इसमें हास्पिटल की जांच के आधार पर एनओसी देने की बात कही गई है। अब सवाल यह भी उठता है कि क्या इतने सालों से हास्पिटल बिना एनओसी के चल रहा था? वहीं, मरीजों की जान जोखिम में डालकर इलाज किया जा रहा था। बता दें कि अगस्त 2017 में 200 बेड के साथ हास्पिटल के साथ शुरू किया गया था। इसके बाद कोविड काल में भी हजारों मरीजों का इलाज हास्पिटल में किया गया।

जनता के पैसों की बर्बादी, जांच हो

वहीं, इस मामले में सिविल सर्जन डा प्रभात कुमार का कहना है कि आग लगना गंभीर है। इसके लिए हो सकता है जरूरी कदम उठाए गए हों। फिलहाल मामले की जानकारी ले रहे हैं। वहीं, सदर अस्पताल को लेकर पीआईएल करने वाले सोशल वर्कर ज्योति शर्मा ने कहा कि यह केवल जनता के पैसों की बर्बादी है। मामले की जांच होनी चाहिए।

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