नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन माता के जिस स्वरूप की आराधना की जाती है वह माता ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। इनकी सवारी वृषभ है, जिससे इन्हें वृषारूढ़ा भी कहते हैं। इस देवी ने दाएँ हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित है। माता शैलपुत्री को सती के नाम से भी जानी जाती है। सम्पूर्ण जड़ पदार्थ पत्थर, मिट्टी ,जल ,वायु अग्नि, आकाश , सब शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। प्रतिपदा इस पूजन का विशेष महत्व है।
प्रतिपदा का भोग विधि –
माँ को सफ़ेद चीजें अत्यधिक प्रिय है. इसीलिए इस दिन सफेद चीजों का भोग जैसे- गाय के घी, बतासा,दूध से बना प्रसाद आदि का भोग लगाए। ऐसा करने से माँ अत्यधिक प्रसन्न होती है और व्यक्ति को आरोग्य और सौभाग्य का आशीर्वाद देती है.
आचार्य प्रणव मिश्रा
आचार्यकुलम, अरगोड़ा राँची
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