Joharlive Team

रांची। केंद्र सरकार के कृषि बिल पर देशभर में समर्थन और विरोध को लेकर सियासी संग्राम छिड़ा है। इस विरोध और सियासत के संग्राम को समर्थक और विरोधी अपने-अपने तरीके से धार देने में जुटे हैं। झारखंड में कृषि बिल को लेकर किसानों की मिलीजुली प्रतिक्रिया ही देखने को मिली।

कुछ किसान इसे किसानों के लिए लाभदायक बता रहे हैं। वहीं, कुछ किसान आने वाले दिनों में इससे काफी नुकसान होने की आशंका जता रहे हैं। नगड़ी प्रखंड के देवड़ी पंचायत की महिला किसान मंजू कच्छप के परिवार में कुल 6 लोग हैं। पति-पत्नी, दो बच्चे और सास-ससुर। मंजू और उनके पति दोनों मिलकर खेती करते हैं और अपने परिवार की जिम्मेदारी को उठाते हैं।

मंजू अपने खेतों में धान, मक्का, अदरक, बिन्स आदि फसल अपने खेत मे उपजाति हैं। मंजू की मानें तो फसल उपजने के बाद उनलोगों को बाजार नजदीक में ही उपलब्ध हो जाता है। पास में ही नगड़ी बाजार में छोटे-छोटे व्यवसायी हैं जो इनकी फसल खरीदते हैं। फसल बेचने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन फसल का उत्पादन अगर अधिक हो जाता है तो दाम में उतार चढ़ाव जरूर हो जाता है।

उन्होंने बताया कि फसल से जो आमदनी होती है, उसी से हम सभी दूसरी फसल भी लगा लेते हैं। हम सभी को साहूकार से कर्ज नहीं लेने पड़ते हैं। हालांकि, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर मंजू का कहना है कि हम सबों को कहीं न कहीं लगता है कि आने वाले दिनों इससे नुकसान हो सकता है।

इसके तहत जो कहा जा रहा है कि खेती के लिए कंपनियों से कॉन्ट्रैक्ट होगा और जब फसल का नुकसान होता है या अच्छी पैदावार नहीं होती है तो कंपनी क्या हमें पैसे छोड़ देगी। अगर ज्यादा उपज होता है तो कम दर पर अनाज लेंगे तो इससे भी किसानों को नुकसान उठाना होगा।

ऐसे में कल के दिन अगर कोई परेशानी होती है तो शिकायत किससे करेंगे। गांव के लोग बेरोजगार हो जाएंगे। बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने पढ़े-लिखे लोगों को लाकर बैठा देगी, ऐसे में बेरोजगारी भी बढ़ेगी।

कुछ ऐसे भी किसान हैं जिनका साफ मानना है कि अभी तो फिलहाल हम लोग स्थानीय बाजार में अपने अनाज को या अपने फसल को भेजते हैं, इससे मुनाफा होता है। लेकिन, अगर बाहर की कंपनियां आकर हमें अच्छी खेती के बारे में बताएंगी और मेरे द्वारा उपजाए हुए फसल को वह ले जाते हैं तो उससे हमें एक निश्चित आमदनी होगी। सरकार का यह फैसला सही है।

नगड़ी के किसान बताते हैं कि अपने खेत मे उपजाए आलू को लोकल में जब बेचते हैं तो कम पैसे मिलते हैं। लेकिन इसी को जब रांची ले जाकर बेचते हैं तो बिचौलियों से छुटकारा मिलता है और सीधा मुनाफा मिलता है। सरकार का यह फैसला सही है। सीधा लाभ किसानों को मिलेगा।

किसानों के द्वारा इस बिल में एमएसपी तय करने की मांग हो रही है। दरअसल, एमएसपी से किसानों को अपने फसल में नुकसान नहीं हो इसके लिए देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था लागू की गई है। इसमें अगर फसल की कीमत बाजार के मुताबिक कम मिलती है तो सरकार उसे एमएसपी के हिसाब से खरीद लेती है। ताकि, किसानों को नुकसान से बचाया जा सके। एमएसपी पूरे देश के लिए एक होती है।

नगड़ी बाजार में अनाज खरीद करने वाले थोक दुकानदारों की मानें तो इस बिल के आ जाने से मंडी व्यवस्था समाप्त हो जाएगी तो फिर किसानों के फसल सीधे कंपनियों के द्वारा खरीद लिए जाते हैं। फिर हम व्यवसायियों की व्यवसाय ठप्प पड़ जाएगा और हम सभी बेरोजगार हो जाएंगे। किसानों को भी दिक्कत होगा कि व्यवसायी उनसे अपने हिसाब से कम कीमत में अनाज खरीदेंगे।

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