रांची: झारखंड में ठनका (आकाशीय बिजली) की चपेट में आने से पिछले 10 साल में करीब 2500 लोगों की जान जा चुकी है. पिछले चार साल से ठनका से मरने वालों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है. फिलहाल, हर साल 300 से 350 लोगों की मौत ठनका से हो रही है. इस साल भी अब तक करीब 200 लोगों की मौत ठनका से हो चुकी है. सरकारी आंकड़े के अनुसार, यह संख्या कम हो सकती है क्योंकि कई मौतें रिपोर्ट नहीं होती हैं और लोगों द्वारा ठनका से मौत को सामान्य मौत के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.
2016 के बाद बढ़ी घटना की संख्या
झारखंड में 2016 के बाद ठनका गिरने से मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है. 2016 में राज्य में 142 लोगों की मौत हुई थी, जो 2017 में बढ़कर 178 हो गई. 2020 में यह आंकड़ा 300 को पार कर गया और पिछले साल 334 मौतें हुई थीं.
हालिया घटनाएं
- 14 अगस्त को सिमडेगा में तीन खिलाड़ियों की मौत ठनका गिरने से हुई, जबकि पांच लोग घायल हो गए. खिलाड़ी हॉकी का मैच खेलकर लौट रहे थे और बारिश के कारण पेड़ के नीचे शरण लिए हुए थे. पेड़ पर बिजली गिरने से तीन की मौत हो गई और पांच का इलाज किया जा रहा है.
- 16 अगस्त को रांची में रिनपास के एक कर्मी पर आकाशीय बिजली गिर गई, जिससे उसकी मौत हो गई. यह घटना बरसात के मौसम में राजधानी के लिए सामान्य हो गई है.
मुआवजे की व्यवस्था
राज्य सरकार वज्रपात से मौत होने पर 4 लाख रुपये का मुआवजा देती है. घायलों को 2 लाख रुपये तक का मुआवजा और घर को नुकसान होने पर 2,100 रुपये से लेकर 95,100 रुपये तक का भुगतान किया जाता है. मवेशियों की मौत पर 3,000 रुपये से 30,000 रुपये तक का मुआवजा मिलता है.
विशेषज्ञों की राय
झारखंड उन राज्यों में से एक है जहाँ वज्रपात से सबसे अधिक मौतें होती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इस समस्या को रोकने के लिए अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है. जिलास्तरीय आपदा प्रबंधन संस्थाओं को मजबूत किया जा सकता है. 2016 के आसपास राज्य ने इस दिशा में प्रयास किए थे, जिससे अन्य राज्यों को दिशा मिली थी और आज ये प्रयास अन्य राज्यों में भी दिख रहे हैं.