रांची : झारखंड में सिंचाई परियोजनाएं दम तोड़ रही है. आजादी के बाद शुरू हुई सिंचाई परियोजनाएं अब तक अधूरी है. इस कारण किसानों को खेती की चिंता सता रही है. झारखंड के किसानों की खेती आज भी भगवान के भरोसे है. आजादी के 77 साल बाद भी राज्य के आधे खेत में सिंचाई का पानी नहीं पहुंचा है. जल संसाधन विभाग का दावा है कि करीब 10 लाख हेक्टेयर जमीन में सिंचाई की सुविधा हो गयी है, जबकि राज्य में खेती योग्य करीब 29.74 लाख हेक्टेयर जमीन है. असल में आजादी के 15 से लेकर 20 साल बाद भी झारखंड वाले इलाके में शुरू की गयी सिंचाई परियोजनाएं लंबित हैं. कई परियोजनाओं का काम तो आधा भी पूरा नहीं हो पाया है. झारखंड में कुल 31 सिंचाई परियोजना है. इसमें नौ वृहद सिंचाई परियोजना है. इसमें एक सिंचाई परियोजना एआइबीपी के तहत आ गया है. इसमें केंद्र सरकार मदद कर रही है. आठ परियोजना राज्य योजना से संचालित है. 16 योजनाएं राज्य योजना के तहत मध्य सिंचाई परियोजनाएं हैं. नौ सिंचाई परियोजनाएं बंद हो गयी है. जन विरोध के कारण इन परियोजनाओं को सरकार ने बंद कर दिया है.

स्वर्णरेखा  बहुद्देशीय परियोजना

सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना के लिए अब भारत सरकार 90 फीसदी राशि दे रही है. इससे 10465 हेक्टेयर में सिंचाई क्षमता विकसित हो सकती है. 1978 में इस योजना की 128.99 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति मिली थी. समय पर निर्माण कार्य नहीं होने के कारण अब तक 12849.46 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति मिल चुकी है. इस योजना का खर्च छह बार पुनरीक्षित हो चुका है. केंद्र सरकार इसमें अब तक 1889.61 करोड़ रुपये अनुदान के रूप में दे चुका है.

कोनार परियोजना

इसी तरह कोनार परियोजना की शुरुआत 1975 में हुई थी. इसकी शुरुआती प्रशासनिक स्वीकृति 11.43 करोड़ रुपये की थी. समय पर योजना पूरी नहीं होने के कारण अब तक 2176.25 रुपये खर्च करने की प्रशासनिक स्वीकृति मिल चुकी है. इस पर अब तक करीब 500 करोड़ रुपये खर्च हो चुका है.

गुमानी बराज योजना

गुमानी बराज योजना की शुरुआत 1976 में हुई थी. इसकी शुरुआती प्रशासनिक स्वीकृति 3.83 करोड़ रुपये की थी. समय पर पूरा नहीं होने के कारण यह योजना 361.35 करोड़ रुपये की हो गयी है. राज्य में करीब आधा दर्जन से अधिक परियोजनाएं ऐसी हैं, जो आजादी के 20-25 साल बाद झारखंड वाले इलाके में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गयी थी. वह आज तक पूरी नहीं हो पायी है. 1969 में शुरु हुई कनहर परियोजना भी आज तक लंबित है. यह योजना अब नये रूप में आनेवाली है.

पलामू में पड़े अकाल के बाद शुरू हुई योजना आज भी लंबित

सिंचाई परियोजना को लेकर संघर्ष करने वाले पूर्व विधायक हेमेंद्र प्रताप देहाती कहते हैं कि 1968 मंप पलामू प्रमंडल में अकाल पड़ा था. उस वक्त घर-घर जाकर इसकी जानकारी ले रहे थे. देखा था, कैसे लोग पानी के लिए तड़प रहे थे. 1969 में विधायक बन गये. आंदोलन करने के बाद कनहर परियोजना अस्तित्व में आया था. आज यह परियोजना लंबित हो गयी है. अब लोग इसका स्वरूप बदलने की कोशिश कर रहे हैं. पहले यह योजना एक हजार करोड़ रुपये की थी. अब लोगों को पाइप लाइन से खेती योग्य पानी देने की तैयारी है. यह गलत है.

परियोजनाओं का हाल

सिंचाई योजना कब शुरू            खर्च                   सिंचाई क्षमता (पूरी होने पर)

सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना 1978          6639.56 करोड़                 10465 हेक्टेयर

कोनार सिंचाई परियोजना    1975               498.65  करोड़                 54435 हेक्टेयर

पुनासी जलाशय परियोजना 1982                 506.02 करोड़            22089 हेक्टेयर

गुमानी बराज परियोजना     1976             180.0      करोड़                 16194 हेक्टेयर

अमानत बराज परियोजना    1974               317.60  करोड़                 26990 हेक्टेयर

उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना 1970       102.97  करोड़                 22104 हेक्टेयर

रामरेखा जलाशय योजना           1987       50.48      करोड़                4405 हेक्टेयर

नकटी जलाशय योजना        1983       29.92  करोड़             ——–

बटाने जलाशय योजना        1975       234.08 करोड़                         2360 हेक्टेयर

 

 

Share.
Exit mobile version