रांची: मकर सक्रांति के अवसर पर तिलकुट का विशेष महत्व होता है. भगवान सूर्य को तिल का भोग लगाकर ही मकर सक्रांति का पर्व मनाया जाता है. मान्यताओं के अनुसार इस दिन तिल खाना अति शुभ माना जाता है और जब बात तिल की हो तो तिलकुट सबसे पहले जेहन में आता है.
रांची के बाजारों में खोया तिलकुट से लेकर गुड तिलकुट लोगों के बीच खासा पसंद किया जा रहा है. अगर देश की बात की जाए तो गया के तिलकुट पूरे देश में प्रसिद्ध हैं. गया व नवादा के कारीगर ही रांची में भी तिलकुट बनाने का काम कर रहे हैं. हरमू बाजार स्थित तिलकुट भंडार के संचालक छोटू कहते हैं मैं खुद गया से हूं और पिछले 25 सालों से अपनी दुकान लगा रहा हूं. हमारे पास करीब 10 गया के कारीगर हैं, जो सुबह के 5 बजे से तिलकुट बनाने में लगे हुए हैं.
खोया और गुड़ की तिलकुट की डिमांड अधिक
छोटू बताते हैं कि हमारे पास गुड़ और खोया के तिलकुट की डिमांड अधिक है साथ ही चीनी तिलकुट (200 रूपए किलो), गुलाब तिलकुट (250 रूपए किलो), पिस्ता तिलकुट (300 रूपए किलो) भी लोग पसंद कर रहे हैं. उन्होंने कहा गया और रांची के तिलकुट में फर्क की बात की जाय तो गया का पानी अलग होता है, वहां तिल का उपयोग चीनी के मुकाबले अधिक करते हैं व इसे मिलाने से लेकर गुथने तक का अपना एक तरीका है. जो हर जगह के कारीगर नहीं कर सकते. गया के कारीगर संदीप तिलकुट बनाते हुए कहते हैं कि तिल व गुड़ को करीबन आधा घंटा तक लोहे के सील से पीटना होता है. साथी हम खोया कभी तिल के साथ नहीं मिलाते ऐसा करने से दो-तीन दिन में तिलकुट खस्ता हो जाते हैं.
गया का स्वाद अब रांची में
खरीदारी करने आए ग्राहक प्रदीप कहते हैं कि हम पिछले 10 सालों से इसी दुकान से तिलकुट लेते जा रहे हैं. क्योंकि जो स्वाद गया के कारीगरों द्वारा बनाए गए तिलकुट में है, वो कहीं और नहीं. हमें रांची में ही गया का स्वाद मिल जाता है. छोटू बताते हैं गुड तिलकुट (250 रूपए किलो) व खोवा तिलकुट (400 रूपए किलो) के अलावा गुड बदाम(200 किलो), ग़ज़क(200 रूपए किलो), गुलाब गजक (230 रूपए किलो), काला तिल लड्डू (180 रूपए किलो), चूरा लाई(200 रूपए किलो), मूढ़इ लाई (250 रूपए किलो) भी लोगों को खूब लुभा रहे हैं.