देश

“ईनाडु की 50 साल की यात्रा: सत्य और न्याय के प्रहरी की अडिग लड़ाई”

हैदराबाद: समाज के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को उजागर करने में न्यूज पेपर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. 50 से अधिक साल से रामोजी राव के नेतृत्व में ‘ईनाडु’ सत्य और न्याय की वकालत करता रहा है. यह लगातार सरकारी अतिक्रमण, भ्रष्टाचार और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरों के खिलाफ खड़ा हुआ है. 25 जून 1975 भारत के इतिहास का एक काला दिन माना जाता है. इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा की, जिसमें प्रेस पर सख्त सेंसरशिप भी शामिल थी. ‘ईनाडु’ के संस्थापक रामोजी राव ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया और अखबारों पर लगाई गई सेंसरशिप के खिलाफ खड़े हो गए.
50 साल से जनता के लिए खड़ा है ईनाडु अपने 50 साल के इतिहास में ‘ईनाडु’ ने सरकार को उसके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराकर लगातार लोगों का समर्थन किया है. जरूरत पड़ने पर अखबार ने अधिकारियों को चुनौती देने में भी संकोच नहीं किया. इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण 2004 में देखने को उस समय देखने को मिला, जब ‘ईनाडु’ ने वाईएस राजशेखर रेड्डी की सरकार के भीतर भ्रष्टाचार को उजागर किया. अखबार ने खुलासा किया कि कैसे सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग किया जा रहा था, जिसमें निजी लाभ के लिए भूमि और संसाधनों का अवैध विनियोग भी शामिल था. ईनाडु के 50 साल ईनाडु के 50 साल  इन खुलासों के जवाब में वाईएसआर सरकार ने रामोजी राव और ‘ईनाडु’ को निशाना बनाकर जवाबी कार्रवाई की. सरकार ने राव के स्वामित्व वाली संपत्तियों को नष्ट करने का प्रयास किया, जिसमें रामोजी फिल्म सिटी के कुछ हिस्से भी शामिल थे, जो एक प्रमुख फिल्म स्टूडियो परिसर है. फिल्म सिटी के भीतर की इमारतों और बुनियादी ढांचे को ध्वस्त कर दिया गया, और स्थानीय समुदायों की सेवा करने वाली सड़कों को भी नुकसान पहुंचाया गया.
इन आक्रामक उपायों के बावजूद, रामोजी राव पीछे नहीं हटे. उन्होंने कानून के माध्यम से सरकार की कार्रवाइयों का मुकाबला किया और आलोचनात्मक रिपोर्ट प्रकाशित करना जारी रखा. इस कठिन दौर में उनकी दृढ़ता ने पत्रकारिता की ईमानदारी और जनहित के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को पेश किया. 2019-2024: अथॉरिटेरीअन के खिलाफ लोकतंत्र की रक्षा 2019 और 2024 के बीच वाईएस जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व में राज्य में अथॉरिटेरीअन प्रैक्टिस में वृद्धि देखी गई.
इस दौरान, ‘ईनाडु’ ने सरकार के कदाचार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया. अखबार को काफी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जिसमें उसके कर्मचारियों को धमकियां और डराने-धमकाने के प्रयास शामिल थे, लेकिन यह सच्चाई को रिपोर्ट करने के अपने मिशन पर अडिग रहा. विरोध प्रदर्शन करते रामोजी राव विरोध प्रदर्शन करते रामोजी राव  ‘ईनाडु’ ने सत्ता के सरकारी दुरुपयोग को उजागर करने और जनता की चिंताओं को आवाज उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अखबार की निडर रिपोर्टिंग ने सरकार के कार्यों को चुनौती देने में मदद की और 2024 के चुनावों में महत्वपूर्ण राजनीतिक बदलावों में योगदान दिया. सम्मान और भरोसा हासिल किया विरोध का सामना करने के बावजूद, ‘ईनाडु’ ने पिछले कुछ सालों में जनता और राजनीतिक नेताओं दोनों का सम्मान और भरोसा हासिल किया है.
यहां तक ​​कि जो लोग शुरू में अखबार की आलोचना करते थे या उसे नजरअंदाज करते थे, वे भी इसके प्रभाव और विश्वसनीयता को महत्व देने लगे. उदाहरण के लिए पूर्व मुख्यमंत्री मर्री चन्ना रेड्डी, जिन्होंने एक बार ‘ईनाडु’ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर दिया था. हालांकि उन्होंने बाद में अखबार के महत्व को स्वीकार किया. उन्होंने स्वीकार किया कि वे सटीक और समय पर जानकारी के लिए ‘ईनाडु’ पर भरोसा करते थे, खासकर बाढ़ और तूफान जैसी आपात स्थितियों के दौरान. यह सम्मान अखबार की खबरों के एक विश्वसनीय सोर्स के रूप में उसकी भूमिका और सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन पर इसके प्रभाव को दर्शाता है. 1983 में रामोजी राव का विद्रोही रुख:
प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए एक ऐतिहासिक लड़ाई प्रेस की स्वतंत्रता के लिए रामोजी राव की लड़ाई वास्तव में भारतीय मीडिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है. 9 मार्च, 1983 को विधान परिषद के निर्णय और उसके बाद के कानूनी और राजनीतिक पैंतरेबाजी से जुड़ा विवाद पत्रकारिता की अखंडता और स्वतंत्रता के प्रति उनकी अथक प्रतिबद्धता को दर्शाता है. यह संघर्ष उस समय शुरू हुआ जब रामोजी राव के अखबार ने ‘Elders’ squabble’ टाइटल से एक क्रिटिकल आर्टिकल पब्लिश किया, जिसके कारण कुछ राजनीतिक हलकों से कड़ी प्रतिक्रिया हुई.
कांग्रेस एमएलसी के नेतृत्व में विधान परिषद ने राव को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया, जिससे संवैधानिक संकट पैदा हो गया. गिरफ़्तारी के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट के स्थगन के बावजूद, राजनीतिक और कानूनी संस्थाओं की ओर से काफी दबाव रहा. इस दौरान स्थिति और बिगड़ती गई. इसका ड्रामेटिक क्लाइमेंक्स 28 मार्च 1984 को उस वक्त हुआ, जब हैदराबाद के पुलिस आयुक्त विजय राम राव ने गिरफ्तारी वारंट की तामील करने का प्रयास किया. राव द्वारा गिरफ्तारी का विरोध करने के निर्णय और सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश ने प्रेस की स्वतंत्रता और राजनीतिक सत्ता के बीच तनाव को उजागर किया. इस घटना ने मीडिया के अधिकारों के मुद्दे पर राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया और भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक मिसाल कायम की. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया में रामोजी राव के नेतृत्व ने प्रेस स्वतंत्रता के रक्षक के रूप में उनकी स्थिति को और मजबूत किया.
उनके प्रयासों ने मीडिया के अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर व्यापक चर्चा में योगदान दिया, जिसमें लोकतांत्रिक समाज में एक शक्तिशाली और स्वायत्त संस्था के रूप में प्रेस की भूमिका पर जोर दिया गया. प्रेस की स्वतंत्रता और अखंडता के प्रति रामोजी राव के दृढ़ समर्पण ने ‘ईनाडु’ को भारत में एक विश्वसनीय और प्रभावशाली आवाज बना दिया है, जो लगातार लोकतंत्र और लोगों के अधिकारों की रक्षा करता है.

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