रांची : आज पितृ पक्ष का अंतिम दिन है. और आज के दिन को ही महालया भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार आज के दिन सभी पितरों की धरती से विदाई होती है और माता रानी का धरती पर आह्वान किया जाता है. कल से नवरात्रि शुरू होने वाली है. जिसे लेकर तैयारियां जोरों से चल रही है. लेकिन एक जगह ऐसी भी है जहां दुर्गा पूजा के लिए कोई भव्य पंडाल नहीं बनाया जाता. बल्कि साधारण तरीके से मां की पूजा होती है. इस जगह की पूजा बहुत ही खास है. जहां सालों से न तो प्रतिमा का स्वरूप बदला और न ही रीति रिवाज. हम बात कर रहे है मेन रोड अल्बर्ट एक्का चौक स्थित दुर्गाबाड़ी की. जहां पिछले 141 वर्षों से बंगाली समुदाय पूजा करता आ रहा है. बंगाल से आए कुछ लोगों ने एक कमेटी का गठन किया था. जिसे नाम दिया गया श्री श्री हरि सभा दुर्गा पूजा समिति. इसके बाद से आजतक बंगाली रीति रिवाज से दुर्गाबाड़ी में मां की आराधना की जा रही है.
यहां पर बाकी जगहों की तरह नवरात्रि के 9 दिन पूजा नहीं होती बल्कि सृष्टि से मां दुर्गा की पूजा शुरू होती है. कमेटी के सहसचिव ने बताया कि यहां पारंपरिक तरीके से पूजा होती है. पूजा के समय मुहूर्त का भी ख्याल रखा जाता है. यहां पर मूर्ति भी हर वर्ष एक जैसी ही होती है. मूर्ति का रूप या श्रृंगार बदला नहीं जाता. मूर्तिकार भी कई पीढ़ियों से दुर्गाबाड़ी में प्रतिमा का निर्माण कर रहे है.
दुर्गा बाड़ी में प्रतिमा का विसर्जन भी विशेष तरीके से होता है. अन्य पूजा पंडालों की तरह विसर्जन में वाहनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. बल्कि श्रद्धालु मां की प्रतिमा कंधे पर विसर्जन के लिए ले जाते है. नवरात्र के नौवें दिन यानी कि नवमी को पूजा के बाद बलि प्रथा होती है. दुर्गा बाड़ी में गन्ने और बड़े नींबू की बलि दी जाती है. चूंकि दुर्गा बाड़ी प्रांगण में भगवान कृष्ण का भी मंदिर है. इसलिए वहां पर अहिंसक बलि दी जाती है. कमेटी के सदस्य सेवा भाव से लगभग सैकड़ों वर्षों से मां दुर्गा की पूजा करते आ रहे है.
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