Hazaribagh : शहर की गलियों में एक सनसनीखेज हत्या, पुलिस की सुस्ती और एक ऐसा कानूनी मोड़ जिसने मुख्य आरोपी को जेल से बाहर कर दिया। उदय साव हत्याकांड में आरोपी संतोष मेहता को कोर्ट से राहत मिली है. पुलिस तय 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करने में नाकाम रही. इस एक गलती ने एक बड़े अपराधी को सलाखों के पीछे रखने के बजाय आज़ादी का रास्ता दिखा दिया.
क्या है मामला
2 दिसंबर 2024 की शाम हजारीबाग के जेल रोड पर गोलियों की आवाज़ गूंजी। कटकमदाग की प्रमुख कुमारी विनीता के पति उदय साव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जमीन विवाद को इस हत्या की मुख्य वजह माना गया। विनीता के बयान पर अज्ञात हमलावरों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ, और पुलिस जांच में हत्या की गुत्थी धीरे-धीरे सुलझती गई।
पुलिस ने जांच के दौरान संतोष कुमार मेहता को इस हत्या का मास्टरमाइंड माना, जबकि निरंजन यादव और राहुल पासवान को हत्या के लिए रेकी करने का दोषी पाया गया। इन दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया, लेकिन मुख्य आरोपी संतोष पर पुलिस समय रहते चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई।
कानूनी चूक और संतोष मेहता की बेल
संतोष मेहता की ओर से हजारीबाग सिविल कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि उसके खिलाफ 90 दिनों की समय-सीमा में चार्जशीट नहीं दाखिल की गई, जो कानूनी रूप से उसकी बेल का आधार बन सकता था। जब कोर्ट ने फाइलिंग सेक्शन से इस बारे में जानकारी मांगी, तो साफ हो गया कि पुलिस की ओर से कोई चार्जशीट दाखिल नहीं हुई थी। अभियोजन पक्ष ने बेल न देने की अपील की, लेकिन कानूनी प्रक्रिया में हुई देरी का सीधा फायदा संतोष मेहता को मिला और कोर्ट ने उसे जमानत दे दी। एक संगीन हत्याकांड में मुख्य आरोपी को सिर्फ पुलिस की लापरवाही के कारण राहत मिलना, न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है। अब सवाल ये उठता है कि क्या पुलिस अपनी गलती सुधार पाएगी और संतोष मेहता को फिर से जेल की सलाखों के पीछे भेज सकेगी? या फिर यह केस भी उन फाइलों में दबकर रह जाएगा जिनमें अपराधी कानून की खामियों का फायदा उठाकर छूट जाते हैं? जवाबदेही किसकी? पुलिस की या सिस्टम की?
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