Joharlive Desk
नई दिल्ली : भारत में चल रहे किसान आंदोलन को लेकर ब्रिटेन की संसद में भी चर्चा हुई। आंदोलन कर रहे किसानों की सुरक्षा और मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर भारत सरकार पर दबाव बनाने के लिए ब्रिटेन की संसद में डाली गई याचिका के बाद यह चर्चा हुई है। जानकारी के मुताबिक, इस याचिका पर एक लाख से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए थे।
ब्रिटेन की संसद में गलत तथ्यों पर आधारित एकतरफा बहस के विरोध में भारतीय उच्चायोग की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया दी गई है। लंदन में मौजूद भारतीय उच्चायोग ने कहा है, भारत से संबंधित मुद्दे पर एक ई-याचिका अभियान को आधार बनाते हुए ब्रिटेन की संसद में एकतरफा चर्चा की गई। हमें इस बात का गहरा अफसोस है कि एक संतुलित बहस के बजाय, झूठे दावे- बिना पुष्टि या तथ्यों के दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर चर्चा की गई।
भारतीय हाईकमीशन द्वारा बयान में कहा गया है, यह चिंता का विषय है कि एक बार फिर ब्रिटिश भारतीय समुदाय को भ्रमित करने की कोशिश की जा रही है। भारत में अल्पसंख्यकों के इलाज के बारे में संदेह जताया जा रहा है, कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन का झूठा भ्रम फैलाया जा रहा है। किसान आंदोलन और मीडिया की स्वतंत्रता पर उठाए गए सवालों के जवाब में कहा, ब्रिटिश मीडिया सहित तमाम विदेशी मीडिया भारत में मौजूद है। मीडिया किसान आंदोलन के हर पहलू को कवर कर रही है, ऐसे में भारत में मीडिया की स्वतंत्रता की कमी का सवाल ही नहीं उठता। वहीं, ब्रिटिश सरकार में मंत्री नाइजल एडम्स का कहना है कि ये भारत का घरेलू मामला है।
लंदन के पोर्टकुलिस हाउस में 90 मिनट तक चली चर्चा के दौरान कंजर्वेटिव पार्टी की थेरेसा विलियर्स ने साफ कहा कि कृषि भारत का आंतरिक मामला है और उसे लेकर किसी विदेशी संसद में चर्चा नहीं की जा सकती। वहीं चर्चा पर जवाब देने के लिए प्रतिनियुक्त किए गए मंत्री निगेल एडम्स ने कहा कि कृषि सुधार भारत का ‘घरेलू मामला’ है, इसे लेकर ब्रिटेन के मंत्री और अधिकारी भारतीय समकक्षों से लगातार बातचीत कर रहे हैं। एडम्स ने उम्मीद जताई कि जल्द ही भारत सरकार और किसान संगठनों के बीच बातचीत के माध्यम से कोई पॉजिटिव रिजल्ट निकलेगा।