रांची: फिल्म ‘धूमकुड़िया’ टूटे हुए सपनों की कहानी है, उन हजारों आदिवासी लड़कियों की कहानी है जिन्हें झूठे वादों पर बड़े शहरों में ले जाया जाता है और उनका शोषण किया जाता है. ‘धूमकुड़िया’ झारखंड की 14 साल की एक लड़की के जीवन की सच्ची घटनाओं पर बनी एक फिल्म है. इस फिल्म को 12 जुलाई को प्रतिष्ठित कान फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित किया जाएगा.
फिल्म के निर्देशक नंदलाल नायक जो स्वयं एक लोक कलाकार होने के साथ एक संगीत निर्देशक भी हैं, उनका कहना है कि वह अब भी उस लड़की की आंखों में दिखने वाले डर को याद करते हैं जिसकी जिंदगी की वास्तविक घटनाओं पर फिल्म आधारित है. फिल्म को पहले ही आलोचकों की प्रशंसा मिल चुकी है और अब इसे विश्व प्रसिद्ध कान फिल्म महोत्सव में दिखाया जाएगा.
नायक ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए इंटरव्यू में कहा कि वह लड़की की कहानी सुनकर करीब-करीब अवसाद में चले गए थे, वह लड़की किस तरह से दिल्ली के एक पॉश इलाके में यौन शोषण का शिकार होने के बाद वहां से निकलकर भागी. ‘धूमकुड़िया’ की शूटिंग 52 दिनों में झारखंड के अंदरूनी इलाकों में हुई. इस फिल्म को 84 देशों में अब तक 60 से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.
नंदलाल नायक पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित लोक कलाकार मुकुंद नायक के बेटे हैं. अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज में छात्रवृति पाने के बाद नंदलाल अमेरिका चले गए थे, इसके बाद वह 2003 में पारंपरिक आदिवासी लोक संगीत पर अनुसंधान के सिलसिले में अपने गांव लौटे.
नंदलाल ने कहा, ‘मैं आदिवासी संगीत के बारे में जानने के लिए झारखंड के एक गांव में गया. उस दौरान मैं 14 साल की एक लड़की से मिला. गांव के लोग बड़ी ही उत्सुकता के साथ मेरी कहानी सुनने के लिए मेरे पास आ रहे थे, लेकिन यह बच्ची बेहद शांत और किसी भी चीज को लेकर इच्छुक नहीं थी.’
नंदलाल ने धीरे-धीरे उसका विश्वास जीता और फिर उसने बताया कि किस तरह से उसे मानव तस्करी के जरिए दिल्ली ले जाया गया और उसका यौन शोषण किया गया. फिल्म के निर्देशक नंदलाल ने कहा, ‘उसकी कहानी सुनने के बाद मेरी पूरी दुनिया ताश के पत्तों की तरह बिखर गई.’ उन्होंने बताया कि जब वह गर्भवती हुई तो उसे एक जगह बंद कर दिया गया. उसने वहां एक स्नानघर में बच्चे को जन्म दिया और बच्चे को सूटकेस में बंद कर किसी तरह से वहां से निकली और रांची के लिए ट्रेन पकड़ी. उसके बाद कई बसें बदलीं और कई किलोमीटर का सफर तय करने के बाद अपने गांव पहुंची.
नंदलाल ने कहा, ‘मैंने उसे गोद लेने का फैसला किया. कुछ महीनों के लिए मैं अमेरिका चला गया, लौटने पर मुझे पता चला कि उसे कई बार बेचा जा चुका है और उसकी हत्या करने से पहले उसके साथ 100 से अधिक बार दुष्कर्म किया गया था.’ निर्देशक ने कहा, ‘इसके बाद मैं अवसाद में चला गया और मैंने आदिवासी संगीत पर अपने अनुसंधान को छोड़ दिया और उसकी जिंदगी पर एक फिल्म बनाने का फैसला किया. इससे पहले मैं कई बड़े फिल्म निर्देशकों और कलाकारों के साथ काम कर चुका था, लेकिन यह फिल्म बनाने में किसी ने मेरी मदद नहीं की.’
नंदलाल ने कहा कि उन्होंने फिल्म बनाने के लिए 3.5 करोड़ रुपए की अपनी पूरी बचत खर्च कर दी, लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं हो सके. फिल्म बनाने के लिए उन्होंने 2010 में एक और प्रयास किया, लेकिन इस बार भी वह कामयाब नहीं हो सके. नंदलाल ने कहा, ‘इसके बाद सुमित अग्रवाल ने मेरी मदद की और हमने यह फिल्म बनाई. घरेलू नौकर के नाम पर पिछले 10 वर्षों के दौरान झारखंड की करीब 30 हजार लड़कियों को मानव तस्करी के जरिए बेचा गया है. बिहार, बंगाल और ओडिशा में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है.’
फिल्म में प्रमुख किरदार रिंकल कच्चप और प्रद्युमन नायक ने निभाए हैं. इसके अलावा राजेश जैश, सुब्रत दत्ता, विनोद आनंद और गीता गुहा भी फिल्म में अहम भूमिका में हैं. फिल्म में काम करने वाले अधिकतर लोग प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से हैं.