राजीव झा/जामताड़ा : लोकसभा चुनाव परिणाम के चौंकाने वाले आंकड़े पूरे देश में दिखाई दिए. एग्जिट पोल और चुनावी महापंडितों के आंकड़े धरे के धरे रह गए. झारखंड का परिणाम भी कुछ कम चौंकाने वाला नहीं रहा. दो दशकों से बीजेपी का एकछत्र राज टूटता हुआ दिखाई दिया. इस बीच सबसे रोचक परिणाम हुआ दुमका लोकसभा क्षेत्र का जहां विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी झामुमो नेताओं की जुगलबंदी ने भाजपा से इस सीट को छीनने का काम किया. दुमका पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का गढ़ कहा जाता है और ये सीट उनकी परंपरागत सीट भी कही जाती है. पिछले चुनाव में बीजेपी के सुनील सोरेन ने इस सीट को झामुमो से छीन कर पूरे देश में सुर्खियां बटोरी थी. वहीं इस बार की बात करें तो 2024 में स्थितियां काफी अलग थी. हेमंत सोरेन का जेल जाना, दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन का बीजेपी में शामिल होना और ED की लगातार हो रही कार्रवाई से झारखंड सरकार और झामुमो दुमका में कोई मजबूत स्थिति में नजर नहीं आ रही थी.
पहली बार शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन दोनों एक साथ दुमका के चुनावी रण से नदारद थे जिससे कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी साफ दिख रही थी. लेकिन इस कमी को अप्रत्याशित रूप से पाटने का काम किया हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन की दमदार उपस्थिति और ताबड़तोड़ रैलियों ने. दुमका लोकसभा में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की इंजीनियरिंग पर गौर करे तो मालूम होगा की पार्टी ने बड़ी बारीकी से अपने भरोसेमंद सिपाहियों को अलग अलग विधानसभा की जिम्मेदारी देकर बीजेपी को अपने चक्रव्यूह में फंसाया. जहां दुमका और जामा विधानसभा में लगातार जनसंपर्क और सभाओं के माध्यम से राज्य सरकार के मंत्री, दुमका के स्थानीय विधायक और हेमंत सोरेन के अनुज, बसंत सोरेन ने मोर्चा को बखूबी सम्भाला और दुमका में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार हुई सभाओं के बावजूद बीजेपी कोई खास बड़ी बढ़त लेने में कामयाब नहीं हुई. वहीं शिकारीपाड़ा में पार्टी के प्रत्याशी और स्थानीय विधायक नलिन सोरेन खुद मोर्चा सम्भालते नजर आये और 25 हज़ार की बढ़त से वो साख बचाते दिखे.
नाला विधानसभा में स्थानीय विधायक रवींद्रनाथ महतो के लगातार जनसंपर्क के कारण बीजेपी और झामुमो के फासले को काफी हद तक पाटने का प्रयास सफल होता दिखा. वहीं इस लोकसभा में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला और बीजेपी के लिए निराशाजनक परिणाम दिए है जामताड़ा और सारठ विधानसभा के परिणामों ने. सारठ और जामताड़ा में आख़िरी बार झामुमो ने 2009 में जीत दर्ज की थी. जिसके बाद सारठ से बीजेपी और जामताड़ा से कांग्रेस ही विधायक चुनती आई है. झामुमो के लिए सबसे ज़्यादा चिंता इसी दोनों सीट के को लेकर थी. सारठ में जहां आंतरिक गुटबाज़ी और बीजेपी की मज़बूत पकड़ का डर था वही जामताड़ा में ज़िला अध्यक्ष के निधन के बाद अनसंगठित ज़िला समिति और गठबंधन के प्रतिनिधियों में उत्साह की कमी के कारण माहौल लगभग उदासीन था. लेकिन अप्रत्याशित रूप से लगभग एक पखवाड़े तक सूबे के मंत्री और गढ़वा विधायक मिथिलेश कुमार ठाकुर के सघन दौरे, सुदूर क्षेत्रों में जनसंपर्क और बैठकों के लंबे दौर ने जामताड़ा और सारठ की हवा का रुख मोड़ कर रख दिया.
एक तरफ जहां जामताड़ा सदर में बुद्धिजीवी वर्गों की बैठकों, विभिन्न सामाजिक संगठन से समन्वय ने झामुमो के प्रति लोगो को आकर्षित किया वहीं पूर्व विधायक स्वर्गीय विष्णु भैया के वोट बैंक को पार्टी की तरफ मोड़ कर रख दिया. कर्माटांड में महाजनी आंदोलन के समय से शिबू सोरेन के सारथी रहे झगरू पंडित के यहाँ पहुंच कर बीजेपी के गढ़ में ज़बरदस्त सेंधमारी की. जामताड़ा की उपनगरी कही जाने वाली मिहिजाम में भी जहां लोकसभा चुनावों में बीजेपी को हमेशा बढ़त मिलती रही है वहाँ भी बैठकों की लड़ी लगाकर स्थानीय पार्षदों पूर्व पार्षदों को अपने ख़ेमे में करने में वो सफल रहे. इस बीच जो सबसे ज़्यादा कारगर और असरदार चीज रही वो थी पंचायत प्रतिनिधियों को गोलबंद करना.
स्थानीय पार्टी कार्यकर्ता बताते हैं कि जामताड़ा और सारठ के लगभग सभी पंचायत में उन्होंने सीधा संपर्क साधा और ग्रामीण क्षेत्रों के मतदान का पैटर्न पूरी तरह पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में कर दिया. मिथिलेश ठाकुर कि रणनीति का परिणाम ही कहिए जो सारठ विधानसभा पिछले लोकसभा में 22 हज़ार के बढ़त के साथ बीजेपी को विजयी बनाने में अहम भूमिका निभाया था वो इस चुनाव में मात्र 1 हज़ार वोटों में सिमट गई वहीं जामताड़ा में पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 34 हज़ार की बढ़त इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी को मिली. कुल मिला कर सारे राजनीतिक पंडित यही आंक रहे हैं कि झामुमो नेताओं की जुगलबंदी ने गुरु जी के गढ़ को बीजेपी से छीन लिया.
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