Joharlive Team

रांची। मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी को पद से हटाने एवं कार्याकाल की जांच एसीबी एवं महालेखाकार से कराने की मांग को लेकर झारखंड छात्र संघ व आमया संगठन के अध्यक्ष एस अली ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरन, ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम व अन्य को मांग पत्र दिया। एस अली ने बताया कि वन सेवा के अधिकारी को नियमविरूध तरीके से पिछले सरकार ने आयुक्त बना दिया जो पांच वर्षों उस पद पर बैठे है, नियमानुसार ये पद आईएएस के लिए है जिनका कार्यालय तीन वर्ष का होता।

मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी मनरेगा अधिनियम 2005 का धज्जियां उड़ाते हुए पंचायती राज व्यवस्था और ग्रामसभा को दरकिनार उपर से योजना थोपने का कार्य किया, मनरेगा नियम अनुसार 35 प्रकार के मौसमी योजनाओं में से कल्याणकारी योजनाओं का चयन ग्रामीणों द्वारा किया जाता था जिसमें सिचाई कूप, तालाबों के जीर्णोद्धार, नादियो नालों में चेकडेम, खेत पगडंडी पथ, मिट्टी मरोम पथ, गांव ग्रेड वन पथ, फलदार वृक्ष रोपन आदि होते थे लेकिन उसे समाप्त कर ऐसे योजनाओं को थोपा गया जिससे लाभुक व ग्रामीण को लाभ नही मिली अधिकारियों का कमीशनखोरी हुआ वही डोभा योजना में अनकों बच्चे व लोग डूबकर मर गये। बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत पौधे व खाद्य की खरीदारी अपने करीबी एजेंसी व सप्लायर से बजार दाम से तीन गुणा अधिक कीमत में क्रय किया गया है, अधिकतर पौधे सूखे और जड़ सड़े हुआ है वहीं घाटिय स्तर के खाद्य खली है, मनरेगा के वार्षिक व्यय के 06% प्रतिशत आकास्मिता राशि में से 35-60 प्रतिशत राशि से मनरेगा कर्मचारियों को वेतन भुगतान होती है बाकि बचे राशियों किस मद में खर्च होता है उसका हिसाब नही।
मनरेगा अधिनियम अनुसार ग्रामीणों समाजिक कार्यकर्ता मजदूर व अन्यों द्वारा सोशल आॅडिट करना है लेकिन मनरेगाआयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने गलत तरीके से गुरजीत सिंह को राज्य समन्वयक के पद पर बहाल कर उनके अधीन जेएसएलपीएस के अनुभवहीन लोग से आॅडिट करवा रहे है। मनरेगा आयुक्त के शोषण और उत्पीड़न के कारण कई मनरेगा कर्मियों की ब्रेन हेमरेज, हार्टआटेक, एक्सीडेंट, सड़क दुर्घटना व आत्महत्या से मौत हो गई वही मनमाने तरीके से 150 से अधिकों कर्मचारियों को हटा दिया गया। मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी के कार्यकाल की जांच होने राज्य का सबसे बड़ी राशि लुट घोटाले का पर्दाफाश होगा।

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