Joharlive Desk

नई दिल्ली : दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के लिए मतदान संपन्न हो गया है। 70 विधानसभा सीटों पर अपने प्रतिनिधि चुनने के लिए लोगों कतार में लगकर अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। शाम 6 बजे तक 54.67 प्रतिशत मतदान हुआ। मतदान प्रक्रिया समाप्त होने के बाद एग्जिट पोल्स के रुझान आने शुरू हो गए। तमाम एजेंसियां एग्जिट पोल के जरिए बता रही हैं कि किस पार्टी को कितने सीटें मिल सकती हैं। बताते चलें कि 2015 के विधानसभा में दिल्ली की जनता ने जोश दिखाया था। उस चुनाव में सुबह से ही वोटरों के बीच जोश देखने को मिला था। चुनाव आयोग के मुताबिक दोपहर तीन बजे तक 44.78 फीसदी मतदान हुआ है। सुबह 9 बजे तक 2015 में 5.4 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि मौजूदा चुनाव की बात की जाए तो अभी तक यह प्रतिशत महज 3 है। यानी 9 बजे तक की वोटिंग में पिछले चुनाव की तुलना में इस बार काफी निराशा देखने को मिल रही है।
एग्जिट पोल्स कुछ इस तरह हैं-

आजतक
आम आदमी -32-38
बीजेपी-2-8
कांग्रेस -0-0
अन्य-0

इंडिया टीवी
आप- 44 सीटें
भाजपा-26 सीटें
कांग्रेस- 0  

रिपब्लिक टीवी
आप- 48-61 सीटें
भाजपा-09-21 सीटें
कांग्रेस- 0-1

टीवी 9-भारतवर्ष-सिसरो
आप- 54 सीटें
भाजपा-15 सीटें
कांग्रेस- 01

टाइम्स नाउ पोल
आप- 44 सीटें
भाजपा- 26 सीटें
कांग्रेस- 0

न्यूज एक्स-नेता
आप – 53-57 सीटें
भाजपा- 11-17 सीटें
कांग्रेस- 0-2 सीटें

एबीपी
बीजेपी-4-16
कांग्रेस -0-4
आम आदमी पार्टी -42-54
अन्य-0

दिल्ली में किसकी सरकार? : समझें वोट का पूरा गणित

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में इस बार की जंग काफी दिलचस्प साबित होने जा रही है। किस पार्टी का प्रदर्शन कैसा रहेगा और उसे कितनी सीटें मिलेंगी, इसका दारोमदार काफी हद तक वोट शेयर पर भी रहेगा। ऐसे में समझना जरूरी है कि पिछले दो चुनाव में किस पार्टी को कितने वोट मिले थे और उसका प्रदर्शन कैसा रहा था।

2013 विधानसभा चुनाव
2013 विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (अअढ)को 30 फीसदी वोट मिले थे जो 2015 में बढ़कर 54 फीसदी हो गया। कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा और उसका वोट शेयर 40 फीसदी से घटकर 25 फीसदी पर आ गया।  कांग्रेस की सीटें 43 से घटकर 8 पर पहुंच गईं। 70 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 32, आप को 28, कांग्रेस को 8 और अन्य को दो सीटें मिली थीं। आप-कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई थी।  

2014 लोकसभा चुनाव
2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 46 फीसदी था और उसने सातों सीटों पर कब्जा जमाया। 2019 लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने सभी सातों सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन इस बार उसका वोट शेयर 56 फीसदी पहुंच गया।

2015 विधानसभा चुनाव
2015 विधानसभा चुनाव में आप का वोट शेयर 24 फीसदी बढ़कर करीब 50 फीसदी हो गया। उसने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 67 सीटें हासिल कर विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया। कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा, उसे 10 फीसदी से भी कम वोट मिले और उसे एक भी सीट नहीं मिली। भाजपा महज तीन सीटों पर सिमट गई।

2017 नगर निगम चुनाव
2015 में  कांग्रेस का वोट शेयर 10 फीसदी से भी कम पर पहुंच गया। लेकिन 2017 के नगर निगम और 2019 लोकसभा चुनाव में उसका वोट शेयर 20 फीसदी से ज्यादा रहा। दोनों चुनावों में आप को जबरदस्त झटका लगा। निगम चुनाव में आप को कांग्रेस ने तगड़ा नुकसान पहुंचाया। 2015 चुनाव में झटका खाने के बाद कांग्रेस ने जबरदस्त मेहनत करते हुए दमदार प्रदर्शन कर सभी को चौंका दिया।

2019 लोकसभा चुनाव
2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-आप के बीच गठबंधन की कोशिश हुई लेकिन परवान नहीं चढ़ सकी। 15 साल तक कांग्रेस ने दिल्ली पर शासन किया था ऐसे में वह नंबर टू की हैसियत से चुनाव मैदान में नहीं उतरना चाहती थी। इसका उसे फायदा भी मिला। वह पांच लोकसभा सीटों पर दूसरे नंबर पर रही। आप दो सीटों पर नंबर दो पर आई। तीन सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई। भाजपा ने सातों सीटों पर कब्जा जमाया।
कांग्रेस का वोट शेयर 22.5 फीसदी रहा। दो साल पहले हुए निगम चुनाव में आप का वोट शेयर 26 फीसदी था जो घटकर 18 फीसदी पर पहुंच गया। भाजपा ने वोट शेयर में 10 फीसदी का इजाफा किया और ये 46 से 56 फीसदी तक पहुंच गया। इस दौरान 70 विधानसभा सीटों में से 65 में भाजपा सबसे आगे रही जबकि बाकी पांच सीटों पर कांग्रेस आगे रही।  

बदल गई सियासत और रणनीति

इस बार किसका पलड़ा भारी रहेगा इसपर सबकी नजर है। पिछले पांच सालों के दौरान दिल्ली की सियासत में काफी कुछ बदला है। पांच सालों में आम आदमी पार्टी में भारी उथलपुथल मची रही और कई बड़े चेहरे पार्टी से दूर हो गए। केजरीवाल पर तानाशाही और मनमानी के आरोप लगे। बावजूद इसके मुफ्त बिजली-पानी की योजना से उन्होंने लोकप्रियता भी बटोरी। वहीं, भाजपा ने भी मुकाबले में लौटने की पूरी कोशिश करते हुए अपना प्रदेश अध्यक्ष बदला और कमान मनोज तिवारी को दी। कांग्रेस ने भी रणनीति बदलते हुए प्रदेश अध्यक्ष को बदलकर पुराने दिनों की वापसी का पुरजोर प्रयास किया है। वह अब भी दिवंगत शीला दीक्षित के काम को गिना रही है।  

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