Ranchi (Kishlay Shanu) : झारखंड में वर्षों से फैले नक्सलवाद की जड़ें अब कमजोर होती नजर आ रही हैं. राज्य के सघन जंगलों में एक-एक कर नक्सलियों और उग्रवादियों के सुरक्षित ठिकानों पर अब सुरक्षाबलों का कब्जा हो रहा है. झारखंड पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की संयुक्त कार्रवाईयों ने नक्सलियों के हौसले पस्त कर दिए हैं. राज्य के युवा CM हेमंत सोरेन के निर्देश पर और DGP अनुराग गुप्ता की खुली छूट के बाद सुरक्षाबलों के जवान बीहड़ जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में घुस घुसकर लगातार अभियान चला रहे हैं. इन अभियानों में सुरक्षाबलों द्वारा कई हार्डकोर नक्सलियों को ढेर किया गया है, वहीं कुछ को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित कर मुख्यधारा में जोड़ा गया है.
सीआरपीएफ और जिला पुलिस की समन्वित रणनीति से झारखंड के दूर-दराज इलाकों में स्थित नक्सली अड्डों को तहस-नहस किया जा रहा है. देखा जाये, तो बीते 4 वर्षों में कड़ी मेहनत और सटीक सूचना का असर है कि सीआरपीएफ और झारखंड पुलिस नक्सलवाद को खत्म करने के कगार पर है. वहीं, जबसे IPS साकेत कुमार ने झारखंड में सीआरपीएफ के आईजी का पदभार संभाला है, नक्सल विरोधी अभियानों को नई ऊर्जा मिली है. उनकी अगुवाई में जवान न केवल जान की बाजी लगाकर आतंक का सफाया कर रहे हैं, बल्कि स्थानीय लोगों का विश्वास भी जीत रहे हैं.
हर कदम पर जान का खतरा, फिर भी पीछे नहीं हटते जवान
बीहड़ जंगलों में तैनात हर जवान हर पल हर कदम मौत के साए में जीता है. खुले आसमान के नीचे, कभी बारिश, कभी तूफान तो कभी बिजली गिरने का खतरा, इन सबके बीच भी जवानों की हिम्मत नहीं डगमगाती. हाथियों जैसे खतरनाक जानवरों से लेकर जहरीले सांप-बिच्छुओं तक, हर खतरे से रूबरू होते हुए भी सुरक्षाबल हर रोज ऑपरेशन पर निकलते हैं. जंगलों की पथरीली चट्टानों, गहरी खाइयों और तेज बहाव वाली नदियों को पार कर जवान आगे बढ़ते हैं. इन इलाकों में नक्सली जगह-जगह आईईडी बम प्लांट कर सुरक्षा बलों को निशाना बनाने की फिराक में रहते हैं. कई बार जवान इन विस्फोटों का शिकार होकर शहीद हो जाते हैं, लेकिन उनका हौसला आज भी बुलंद है. जवान दुगने जोश के साथ लगातार नक्सलियों के सफाये के संकल्प के साथ दिन-रात जुटे हुए हैं.
मुठभेड़ के बीच भूख-प्यास भूलकर फर्ज निभा रहे जवान
कई बार मुठभेड़ दो से तीन दिनों तक जारी रहता है, जिसमें जवानों को खाना-पानी तक नसीब नहीं हो पाता, लेकिन नक्सलियों के सफाये का जुनून सिर पर सवार रहता है. वे भूख-प्यास भूलकर दुश्मन का सामना करते हैं. गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच जवानों की जवाबी कार्रवाई नक्सलियों की कमर तोड़ देती है.
नक्सलियों का गढ़ रहा बूढ़ापहाड़ अब सेना का सुरक्षित अड्डा
झारखंड का बूढ़ापहाड़ जो कभी नक्सलियों का अभेद्य गढ़ माना जाता था, आज वहां जवानों ने स्थायी कैंप स्थापित कर दिया है. आवागमन के लिए सड़कें बन चुकी हैं और यह क्षेत्र अब नक्सल मुक्त घोषित हो चुका है. बोकारो, चाईबासा और गिरिडीह के जंगलों में हाल ही में चले ऑपरेशन में कई इनामी और महिला नक्सलियों को भी ढेर किया गया.
इस कड़ी कार्रवाई से नक्सलियों के मनोबल पर करारा प्रहार हुआ है. हालात ऐसे बन चुके हैं कि कुछ नक्सली खुद पुलिस से अनुरोध कर रहे हैं कि ऑपरेशन को रोका जाए. लेकिन सीआरपीएफ और पुलिस का उद्देश्य स्पष्ट है – झारखंड को नक्सलवाद और उग्रवाद से पूरी तरह मुक्त करना.
संघर्षों के बीच उम्मीद की किरण
जहां एक ओर नक्सलियों को नेस्तनाबूद किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर कई को समझा-बुझाकर आत्मसमर्पण भी कराया गया है. उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिशें की जा रही हैं. यह संदेश भी दिया जा रहा है कि हिंसा का रास्ता छोड़ कर विकास की धारा में शामिल होना ही बेहतर विकल्प है. सीआरपीएफ और झारखंड पुलिस के इन जांबाजों की बदौलत अब वह दिन दूर नहीं, जब राज्य का हर कोना नक्सल मुक्त होगा और विकास की रफ्तार नई ऊंचाई को छूएगी.
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