देशभर के दलित संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का विरोध किया है जिसमें कहा गया है कि सरकारें एससी-एससी कोटे के आरक्षण में सब कोटा तय कर सकती हैं। बता दें कि पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर राज्य सरकारों को लगता है कि एससी और एसटी वर्ग की कोई जाति ज्यादा पिछड़ी है तो फिर उसके लिए सब-कोटा तय करने का उनको अधिकार है। इस मामले में मायावती का विरोध सबसे अधिक मुखर है।
एसपी सुप्रीमो मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि आरक्षण में वर्गीकरण का मतलब आरक्षण को समाप्त करके उसे सामान्य वर्ग को देने जैसा होगा। हमारी पार्टी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं है। इससे केंद्र और राज्य सरकारों में मतभेद की स्थिति बनेगी। मायावती के साथ देश के अन्य दलित संगठनों ने आरक्षण कोटे में सब कोटा का विरोध किया है। गौरतलब है कि 7 जजों की संवैधानिक बेंच ने 4-3 के बहुमत से कहा था कि एससी और एसटी में क्रीमी लेयर की भी पहचान होनी चाहिए। इस वर्ग में क्रीमी लेयर के तहत आने वाले लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। अब 21 अगस्त को भारत बंद का आह्वान भी कई दलित संगठनों की ओर से किया गया है। खासतौर पर बसपा प्रमुख मायावती ने भी इसका विरोध किया है।
उन्होंने कहा कि इस तरह-तरह आरक्षण को ही खत्म करने की साजिश हो रही है। सब-कोटा पर मायावती ने कहा कि इससे सरकारें अपने मन से किसी भी जाति को कोटा दे सकेंगी और अपने राजनीतिक हितों को साधा जा सकेगा। ऐसा फैसला ठीक नहीं है। यही नहीं उन्होंने क्रीमीलेयर पर भी सुप्रीम कोर्ट की राय का विरोध किया। सीजेआई जस्टिस चंद्रचूढ़ की अगुआई में 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने 1 अगस्त को 6-1 के बहुमत से एक फैसला दिया था कि राज्यों में नौकरियों में SC/ST आरक्षण कोटा में उप वर्गीकरण किया जा सकता है। यानी कि अनुसूचित जाति/जनजाति के भीतर में जो अधिक कमजोर हैं, उनके लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण दिया जा सकता है। यह एक तरह से आरक्षण का वर्गीकरण है और OBC आरक्षण में जो क्रीमीलेयर की व्यवस्था है, उसी तरह की व्यवस्था SC/ST के आरक्षण के भीतर लागू करने का निर्णय सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने दिया है। दिलचस्प है कि इस फैसले के पक्ष में जिन 6 जजों ने निर्णय दिया है। उनमें से एक जस्टिस बीआर गवई खुद दलित समुदाय से आने वाले हैं।
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