रांची : सरकार लाख दावे कर ले लेकिन झारखंड से प्रतिभाओं का पलायन थम नहीं रहा. सूबे में में बेहतर इंजीनियरिंग कॉलेजों के नहीं होने से यहां की प्रतिभाएं कर्नाटक, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रही हैं. झारखंड से प्रतिभाओं के पलायन से सरकार को प्रत्येक वर्ष 280 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ रहा है.
दूसरे राज्यों के कॉलेजों में 3.50 लाख रुपये से लेकर 4 लाख रुपये का एडमिशन खर्च अभिभावकों पर पड़ रहा है. कर्नाटक में आरवीएस, बीएनएम, ओड़िशा में किट, सिलिकोन, आइटीइआर, सीवी रमन, कोलकाता में जाधवपुर, टेक्नो इंडिया, वेस्ट बंगाल कॉलेज आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी और अन्य प्रमुख हैं, जिसकी स्टूडेंट्स में काफी चर्चा रहती है. इसके अलावा वीआइटी वेल्लोर, एसआरएम, शारदा यूनिवर्सिटी, एमआइटी पुने, मणिपाल यूनिवर्सिटी जैसे बड़े संस्थानों की ओर भी छात्र रूख कर रहे हैं. इनका सलाना शुल्क 5 से 7 लाख रुपये है. इस तरह 4 वर्ष के कोर्स के लिए झारखंड के एक अभिभावकों पर 12 लाख रुपये से लेकर 28 लाख रुपये तक का बोझ पड़ रहा है.
6000 से अधिक छात्र प्रत्येक वर्ष इन राज्यों में सिर्फ इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रमों में दाखिला ले रहे हैं. सबसे अधिक यानी दो से ढ़ाई हजार बच्चे कर्नाटक के 180 कॉलेजों में दाखिला लेते हैं. एक हजार से अधिक बच्चे ओड़िशा, 700 से 800 के आसपास पश्चिम बंगाल, 500 से अधिक पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र और यूपी में बच्चे एडमिशन ले रहे हैं.
प्रतिभा का पलायन यहां बेहतर इंजीनियरिंग कॉलेज और आधारभूत संरचना का नहीं होना है. बता दें कि झारखंड में बीआइटी सिंदरी को छोड़ अन्य कॉलेजों की रैंकिंग बेहतर नहीं होने से बच्चे झारखंड में नहीं पढ़ना चाहते हैं. झारखंड में 4 सरकारी और 14 निजी इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जहां 7400 से अधिक सीटें हैं. इनमें बीआइटी सिंदरी को छोड़ अन्य कॉलेजों में सीटें खाली रह जाती हैं. कहने को राजकीय अभियंत्रण कॉलेज दुमका, चाईबासा और रामगढ़ में सरकारी कॉलेज हैं, जो पीपीपी मोड पर चल रही हैं. पर यहां पर पेड सीट भी जैसे-तैसे भरे जाते हैं.
राज्य भर में प्रत्येक वर्ष डेढ़ लाख बच्चे इंटरमीडिएट साइंस की परीक्षा देते हैं. इनमें एक लाख बच्चे झारखंड अधिविद्य परिषद से परीक्षा में शामिल होते हैं. जबिक शेष बच्चे सीबीएसइ, आइसीएसइ बोर्ड से 12वीं बोर्ड की परीक्षा देते हैं. राजधानी रांची समेत बोकारो, जमशेदपुर, देवघर, धनबाद जैसे शहरों में बेहतर एजुकेशन को लेकर अभिभावक अधिक परेशान रहते हैं.
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