JoharLive Desk
पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को बिहार विधानमंडल में साफ शब्दों में कहा कि बिहार में किसी भी हाल में एनआरसी लागू नहीं होगा। सोमवार को बिहार विधानमंडल के विशेष सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि एनआरसी का तो यहाँ सवाल ही पैदा नहीं होता। जब केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी तब असम के संदर्भ में एनआरसी की बात हुई थी। देश के संदर्भ में एनआरसी की बात तो कभी हुई ही नहीं। देश में एनआरसी लागू करने का कोई औचित्य नहीं है। हमें तो इस बात का कोई अहसास तक नहीं है कि अनावश्यक रूप से एनआरसी देश में कहीं आ सकता है। एनआरसी के विषय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी बात रख चुके हैं। ऐसे में एनआरसी पर चर्चा करने का कोई औचित्य नहीं है।
बता दें कि सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर जदयू में दो फाड़ जैसी स्थिति है। प्रशांत किशोर जहां सीएए और एनआरसी की मुखालफत कर रहे हैं वहीं पार्टी के दूसरे नेता सीएए के पक्ष में हैं। रविवार को पीके ने ट्वीट कर कहा था कि बिहार में सीएए और एनआरसी लागू नहीं होगा। पीके ने सीएए का विरोध करने के लिए राहुल और प्रियंका गांधी को धन्यवाद भी दिया जबकि जदयू महासचिव आरसीपी सिंह ने कहा कि लोगों को सीएए और एनआरसी से डरने की जरूरत नहीं है। सीएए को लेकर कुछ लोग भ्रम फैला रहे हैं। ये कानून नागरिकता देने वाला है, किसी का अधिकार छीनने वाला नहीं। एनआरसी पर आरसीपी ने कहा जो अभी आया ही नहीं उसका विरोध समझ से परे है। नीतीश के रहते बिहार में किसी के साथ भेदभाव नहीं होगा।
एनपीआर के मुद्दे पर हो चर्चा
नीतीश कुमार ने कहा कि इन दिनों जनगणना पर बहस छिड़ी हुई है। वर्ष 2010 में जो एनपीआर हुआ था उस पर राज्य सरकार ने तो पहले ही सहमति दे दी है। लेकिन, अब यह बात सामने आ रही है कि एनपीआर में अन्य चीजों के बारे में भी पूछा जा रहा है। मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि इस मुद्दे पर सदन में चर्चा होनी चाहिए। अभी जल-जीवन-हरियाली और मानव श्रृंखला के काम में लगे हैं। मानव श्रृंखला बनने के बाद एनपीआर के मुद्दे पर लंबी चर्चा होगी। हम हर मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार हैं।
केंद्र से जातीय आधारित जनगणना कराने की मांग
मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से मांग की है कि एक बार जातीय आधारित जनगणना होनी चाहिए। नीतीश ने कहा कि 1930 में आखिरी बार जातीय आधारित जनगणना हुई थी। 2010 में जनगणना के साथ ही जातियों की भी गणना की मांग उठी थी। धर्म के आधार पर तो जनगणना हो जाती है लेकिन जातियों के बारे में तथ्य सामने नहीं आ पाते। हम केंद्र सरकार को अपनी राय देंगे। जातीय आधारित जनगणना में किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।