रांची. राज्य में घूमकुड़िया के जरिए एक बार फिर आदिवासी कला संस्कृति को जोड़ने की कोशिशें तेज हो गई हैं. 14 जुलाई को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रांची में केंद्रीय घूमकुड़िया भवन का भूमि पूजन करने जा रहे हैं. ऐसे में सभी 32 आदिवासी जनजातीय समाज में खासा उत्साह देखा जा रहा है.
राजधानी के आदिवासी टोलों में इन दिनों केंद्रीय घूमकुड़िया भवन के भूमिपूजन को लेकर गजब का उत्साह देखने को मिल रहा है. 14 जुलाई को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रांची के करमटोली चौक के पास इस भवन के लिए भूमि पूजन करने जा रहे हैं. ऐसे में सभी 32 जनजातीय समाज इसका स्वागत करता नजर आ रहा है. घूमकुड़िया दरअसल आदिवासी सभ्यता और कला संस्कृति का केंद्र है. जहां आदिवासी समाज के लोग अपनी जिंदगी से जुड़े तमाम पहलुओं एक-दूसरे से साझा करते हैं.
सारे संस्कार तय करने की जगह
अरगोड़ा घूमकुड़िया के शिबू पाहन ने बताया कि ट्राइबल समाज में चाहे बच्चों का जन्म हो या फिर उनकी पढ़ाई लिखाई या फिर शादी विवाह जैसे संस्कार… सभी कुछ घूमकुड़िया में ही बैठकर तय किए जाते हैं और वहीं उन पर चर्चा की जाती है.
धूमकुड़िया के वजूद को बचाने की कोशिश
हरमू घूमकुड़िया के पाहन रवि तिग्गा ने बताया कि घूमकुड़िया को दरअसल धर्मकुड़िया, जोंकएड़पा और लुरकुड़िया के नाम से भी जाना जाता है. आदिवासी समाज की पुरानी संस्कृति में गांव में बने घूमकुड़िया में ही जन्म से लेकर मौत तक के सभी संस्कार तय किए जाते थे. लेकिन समय के साथ घूमकुड़िया की परंपरा और संस्कृति पर शहरीकरण हावी होता गया.
बावजूद इसके टोलों और मोहल्लों में छोटे, स्तर पर ही सही, लेकिन घूमकुड़िया की परंपरा का वजूद बना रहा. हालांकि पिछले कुछ सालों से एक बार फिर इस संस्कृति और सभ्यता को आदिवासी समाज की नई पीढ़ी के सामने लाने के प्रयास तेज किए गए. घूमकुड़िया के जरिये जनजातीय भाषा, सभ्यता और संस्कृति को बचाने की कोशिश की बात कही जा रही है. साथ ही आदिवासी समाज को घूमकुड़िया के जरिए एकजुट करने का प्रयास भी किया जा रहा है.
हर तरह की चर्चा का केंद्र
आदिवासी समाज की कलावती उरांव की मानें तो घूमकुड़िया में ही आदिवासी युवक और युवतियों को जिंदगी और गृहस्थ जीवन की शिक्षा दी जाती है. साथ ही बच्चों को जनजातीय भाषा की पढ़ाई, गीत संगीत और अपने समाज की परंपरा की शिक्षा दी जाती है.
धूमकुड़िया क्या है
आप इसकी तुलना गांव के चौपाल सकते हैं या अब बदलते स्वरूप में क्लब जैसा कह सकते हैं. धूमकूड़िया की एक बड़ी खासियत यह थी कि यहां आदिवासी युवाओं का जुटान हुआ करता था. और ये युवा अपने घर, संस्कृति और संस्कार से लेकर शिक्षा-दीक्षा, समस्या-समाधान तक की चर्चा किया करते थे. लेकिन रोजगार की वजह से होने वाले पलायन ने इस संस्कृति को कमजोर किया जिसे अब फिर से थोड़े बदले रूप के साथ पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है.