30 को अर्घ देने का समय
राँची में 05 24 साम।
31 को अर्घ देने का समय 06 20 सुबह ।
चार दिनों का महापर्व छठ सूर्य देव की आराधना तथा संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए समर्पित है। छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि तक होती है। यह पर्व सूर्य देव व उनकी पत्नी ऊषा को समर्पित होता है। यह महापर्व साल में दो बार मनाया जाता है एक कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में और एक चैत्र माह के शुक्ल पक्ष तिथि को। चार दिन का यह पर्व इस बार 28 अक्टूबर नहाय खाय से शुरू होकर 31 अक्टूबर को पारण के साथ संपन्न होगा।।
छठ पर्व सर्व फलदायी के साथ ही अत्यंत कठिन भी है। इसमे शुद्धता के साथ- साथ कठिन नियमो का भी पालन करना होता है । छठ के इन चार दिनों में सबसे महत्वपूर्ण शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि होती है इसी के कारण इस महा पर्व का नाम छठ पड़ा है। इसे स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते हैं। इस व्रत को सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और संतान के लिए मनाया जाता है। भगवान सूर्य भक्तों को असाध्य रोगों से भी छुटकारा दिलाते हैं।
छठपर्व की तिथियां- 28 अक्टूबर शुक्रवार चतुर्थी तिथि – नहाय- खाय29 अक्टूबर शनिवार पंचमी तिथि – खरना30 अक्टूबर रविवार अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य 31 अक्टूबर सोमवार उगते सूर्य को अर्घ्य छठ पर्व में पवित्रता एवं शुद्धता का विशेष ध्यान रखें- छठ पर्व में मानसिक और शारीरिक पवित्रता बहुत जरूरी है। इसमें चूक होने पर विपरीत फल मिलता है। चार दिन का छठ महापर्व में पहला दिन नहाय खाय के नाम से जाना जाता है। इसमे सेंधा नमक और घी का ही प्रयोग किया जाता है। अरवा चावल, चने की दाल व कद्दू की सब्जी का प्रसाद बनता है। दूसरा दिन खरना कहलाता है इस दिन से उपवास शुरू होगा। व्रती को अन्न जल का त्याग करना पड़ता है और शाम में खीर बना कर पूजा कर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। तीसरा दिन संध्या अर्घ होता है इस दिन व्रती पूरा दिन निर्जला रह कर पूरी शुद्धता से ठेकुवा, कचवनिया का प्रसाद बनाकर नाना प्रकार के फल स बांस ,पीतल या सोने के सुप को सजाकर डूबते हुए सूर्य की अर्घ देती है। चौथा दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ दे कर अपना व्रत खोलती है।
छठ पूजा की पौराणिक कथा– इस महापर्व की कथा महाभारत काल से जुड़ी। पांडव अपना सारा राज-पाट जुए में हार गए थे। वे निराश और हताश थे उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था तब श्रीकृष्ण ने उन्हें छठ की महत्ता बताई तब द्रौपदी ने श्री कृष्ण के कहे अनुसार पुरे विधि-विधान से छठ व्रत किया। जिससे उनकी मनोकामना पूर्ण हुई। पांडवों का राज-पाट और सम्मान वापस मिल गया। इससे यह भी साफ होता है कि छठ पर्व हर तरह की मनोकामना के लिए प्रभावी है।
छठ से जुड़े वैज्ञानिक कारण-षष्ठी तिथि को विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है। सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी पर अधिक मात्रा में होती है। इस दौरान उसके संपर्क में रहना लाभकारी है। इससे बहुत सारे कुप्रभावों से छुटकारा मिलता है। मान्यता है की इस दिन सूर्य की किरणों में रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है।एक पौराणिक कथा के अनुसार कृष्ण पुत्र शांब को कुष्ट रोग हो गया था। इससे मुक्ति के लिए सूर्य की उपासना की गई थी। तब शांब को कुष्ट रोग से मुक्ति मिली थी।
प्रसिद्ध ज्योतिषआचार्य प्रणव मिश्रा
आचार्यकुलम, अरगोड़ा,
राँची
8210075897