विवेक शर्मा
रांची : झारखंड में बेटियों के जन्म को लोग अभिशाप मानते थे. वहीं बेटी के जन्म के साथ ही उसका त्याग कर दिया जाता था. इतना ही नहीं बेटियों का पता लगते ही उन्हें गर्भ में ही मार दिया जाता था. इस बीच प्रधानमंत्री ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत आज से 8 साल पहले की. जिसने न केवल लोगों की सोच बदली. बल्कि समाज में बड़ा बदलाव आया. आज इस योजना की वजह से बेटियों की संख्या बढ़ रही है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य में 1000 पुरुषों पर 986 बेटियां है. जबकि कुछ साल पहले तक 1000 पुरुषों की तुलना में बेटियों की संख्या 936 थी जो चिंता का विषय थी. इसके लिए स्वास्थ्य विभाग भी लगातार अभियान चला रहा है जिससे कि लोगों को जागरूक किया जा सके.
सिविल सर्जन रांची डॉ प्रभात कुमार की माने तो इसके लिए विभाग के अधिकारी और कर्मी मेहनत कर रहे है. एनजीओ की मदद ली जा रही है. वहीं सहिया भी इसमें अहम भूमिका निभा रही है. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारे के साथ कई अन्य स्वास्थ्य योजनाओं का भी लाभ परिवार को मिल रहा है. जिससे कि लोग बेटी के जन्म पर खुशियां मना रहे है. बच्चियों को स्कूल भेज रहे है और उनका भविष्य संवार रहे है. उन्होंने कहा कि रांची जिले के ये आंकड़े बता रहे है कि लोगों की मानसिकता में बड़ा बदलाव आया है. जिसे हमें और बेहतर बनाना है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजना की शुरुआत करने के बाद कहा था, आइए कन्या के जन्म का उत्सव मनाएं. हमें अपनी बेटियों पर बेटों की तरह ही गर्व होना चाहिए. मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि अपनी बेटी के जन्मोत्सव पर आप पांच पेड़ लगाएं. 22 जनवरी 2015 को पानीपत, हरियाणा में योजना की शुरुआत के बाद कहा था कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना से पूरे जीवन-काल में शिशु लिंग अनुपात में कमी को रोकने में मदद मिलती है और महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़े मुद्दों का समाधान होता है. यह योजना तीन मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित की जा रही है अर्थात महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय. साथ ही कहा था कि इस योजना के मुख्य घटकों में शामिल हैं प्रथम चरण में PC तथा PNDT Act को लागू करना, राष्ट्रव्यापी जागरूकता और प्रचार अभियान चलाना तथा चुने गए 100 जिलों (जहां शिशु लिंग अनुपात कम है) में विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित कार्य करना. बुनियादी स्तर पर लोगों को प्रशिक्षण देकर, संवेदनशील और जागरूक बनाकर तथा सामुदायिक एकजुटता के माध्यम से उनकी सोच को बदलने पर जोर दिया जा रहा है.
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