नई दिल्ली: राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना की मांग का विरोध करते हुए कांग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने कहा है कि उनकी पार्टी ने कभी भी पहचान की राजनीति के विचार का समर्थन नहीं किया है. उन्होंने कहा कि जाति जनगणना देश में व्याप्त बेरोजगारी और असमानताओं का समाधान नहीं है. 19 मार्च को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लिखे अपने पत्र में आनंद शर्मा ने कहा कि जाति जनगणना को इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की विरासत का अनादर करने के रूप में गलत समझा जाएगा. पत्र में आनंद शर्मा लिखते हैं कि यद्यपि जाति भारतीय समाज की एक वास्तविकता है, कांग्रेस कभी भी पहचान की राजनीति में शामिल नहीं हुई है और न ही इसका समर्थन किया है. क्षेत्रों, धर्मों, जातियों और जातीयताओं की समृद्ध विविधता वाले समाज में यह लोकतंत्र के लिए हानिकारक है. राष्ट्रीय पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में कांग्रेस एक समावेशी दृष्टिकोण में विश्वास करती है जो गरीबों और वंचितों के लिए समानता और सामाजिक न्याय के लिए नीतियां बनाने में भेदभाव रहित है.
Congress leader Anand Sharma writes to the party's national president Mallikarjun Kharge.
The letter reads, "…In my considered view, a Caste Census cannot be a panacea nor a solution for the unemployment and prevailing inequalities.."
The letter also reads, "…In my humble… pic.twitter.com/U0xUTNXpIF
— ANI (@ANI) March 21, 2024
उन्होंने आगे लिखा कि इंदिरा गांधी के 1980 के आह्वान को याद करना प्रासंगिक है: “ना जात पर न पात पर, मोहर लगेगी हाथ पर”. 1990 के मंडल दंगों के बाद, विपक्ष के नेता के रूप में राजीव गांधी ने लोकसभा में अपने ऐतिहासिक भाषण में 6 सितंबर 1990 को कहा था कि अगर हमारे देश में जातिवाद को स्थापित करने के लिए जाति को परिभाषित किया जाता है तो हमें समस्या है… अगर जातिवाद को संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के लिए एक कारक बनाया जाएगा तो हमें समस्या है… कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकती है. आनंद शर्मा ने आगे कहा कि कांग्रेस ने इस मुद्दे पर जो ऐतिहासिक रुख अपनाया है, वह चिंता का विषय है.
उन्होंने कहा कि यह चिंतन की मांग करता है. मेरी विनम्र राय में इसे इंदिरा जी और राजीव जी की विरासत का अनादर करने के रूप में समझा जाएगा. डिफ़ॉल्ट रूप से यह लगातार कांग्रेस सरकारों और वंचित वर्गों के सशक्तिकरण के लिए उनके काम का अभियोग होगा. यह कांग्रेस के विरोधियों और राजनीतिक विरोधियों को भी मदद प्रदान करता है. यह कहते हुए कि आजादी के बाद सभी जनगणना आयुक्तों ने राष्ट्रीय जाति जनगणना के अपने कारणों और अस्वीकृति को दर्ज किया है, आनंद शर्मा ने अपने पत्र में कहा कि यह उल्लेख करने की आवश्यकता है कि जाति भेदभाव की गणना करने के लिए आखिरी जनगणना 1931 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान हुई थी. स्वतंत्रता के बाद सरकार द्वारा एक सचेत नीतिगत निर्णय लिया गया कि जनगणना में जाति-संबंधित प्रश्नों को शामिल नहीं किया जाए. एससी और एसटी को छोड़कर, जो राज्यों द्वारा एकत्र किए जाते हैं.
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