नई दिल्ली : अब मिलिट्री ट्रेनिंग में अगर कैडेट्स को गंभीर चोट लगती है तो उन्हें रीसेटेलमेंट की सुविधा दी जाएगी. इसके लिए रक्षा मंत्रालय ने प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. हालांकि इसमें ना डिसएबिलिटी पेंशन देने पर फैसला हुआ है और न ही ईसीएचएस सुविधा का लाभ मिलेगा.
जानकारी के मुताबिक, मिलिट्री ट्रेनिंग के दौरान चोट लग जाने की वजह से मेडिकल आधार पर जो कैडेट्स बाहर हो जाते हैं, उन्हें भी रीसेटेलमेंट (पुर्नस्थापन) सुविधा दी जाएगी. रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस संबंध में प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. हालांकि इसमें न तो डिसएबिलिटी पेंशन शामिल है ना ही ईसीएचएस की सुविधा. इसमें वह कुछ भी नहीं है जो सर्विस हेडक्वॉर्टर (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) ने अपने प्रस्ताव में भेजा था.
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, ऐसे कैडेट्स के लिए अवसरों को बढ़ाने के लिए, पुनर्वास महानिदेशालय द्वारा संचालित योजनाओं के लाभ के विस्तार की अनुमति दी गई है. इससे मेडिकल आधार पर निष्कासित हुए 500 कैडेट्स को योजनाओं का लाभ उठाने और उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी. इसी तरह की स्थिति में भविष्य के कैडेट्स को भी समान लाभ मिलेंगे.
रीसेटेलमेंट में शामिल सुविधा
रक्षा मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि कैडेट्स को ऑयल प्रॉडक्ट एजेंसी में अलॉटमेंट के लिए 8 पर्सेंट कोटा के लिए इलेजिबल होने का सर्टिफिकेट दिया जाएगा. मदर डेरी मिल्क बूथ, फ्रूट और वेजिटेबल (सफल) शॉप का अलॉटमेंट हो सकेगा. एनसीआर में सीएनजी स्टेशन के मैनेजमेंट के लिए, एलपीजी डिस्ट्रिब्यूशनशिप के अलॉटमेंट के लिए, रेटल आउटलेट (पेट्रोल और डीजल) के अलॉटमेंट के लिए इलेजिबिलिटी सर्टिकेट दिया जाएगा. सिक्योरिटी एजेंसी स्कीम और टेक्निकल सर्विस स्कीम में शामिल किया जाएगा. ये सब अभी डिसएबल्ड पूर्व सैनिकों और सैनिकों की विडोज (विधवाओं) पर लागू होती हैं.
डिसएबिलिटी पेंशन नहीं
रक्षा मंत्रालय को जो प्रस्ताव भेजा गया था उसमें डिसएबिलिटी पेंशन देने को कहा गया था. 2015 में रक्षा मंत्री ने इस मामले पर एक्सपर्ट कमिटी बनाई थी तब भी कमिटी ने दिव्यांग कैडेट्स को डिसएबिलिटी पेंशन और आर्थिक मदद की सिफारिश की थी. लेकिन तब इसे स्वीकार नहीं किया गया. सर्विस हेडक्वॉर्टर्स ने फिर प्रस्ताव भेजा. जिसमें कहा गया कि अगर कैडेट डिसएबल हो जाता है या मौत हो जाती है तो आर्थिक मदद (एक्स ग्रेशिया) का प्रावधान किया जाए. इसके लिए उन्हें लेफ्टिनेंट की सैलरी के हिसाब से पेंशन दी जा सकती है.
क्यों है जरूरी
अगर ट्रेनिंग के दौरान कोई कैडेट डिसएबल हुआ या उसकी मौत हो गई तो सरकार या फौज की तरफ से उन्हें या परिवार वालों को कोई राहत नहीं दी जाती. दिव्यांग कैडेट्स को मदद देने का मसला संवेदनाओं से भी जुड़ा है. ट्रेनिंग के दौरान डिसएबल होने के बाद कइयों को जिंदगी भर इलाज का भारी खर्चा उठाना पड़ता है. रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, 1985 के बाद अब तक करीब 500 डिसएबल कैडेट्स हैं. हर साल अलग-अलग सैन्य अकैडमी में करीब 10-20 कैडेट्स मेडिकली अनफिट होने की वजह से बाहर हो जाते हैं.