JoharLive Team

रांची । ब्रह्माकुमारी संस्थान की संचालिका निर्मला बहन ने कहा कि भीतर से जो शांत और संतुष्ट है, वह बाहर से अशांत और असंतुष्ट हो ही नहीं सकता। उन्होंने कहा कि शांति एक दैवी मनःस्थिति है, जिसका संबंध मनुष्य मन में रहने वाली विवेक भावना से है। जब मनुष्य का विवेक संतुष्ट रहता है, तब मन शांत और स्थिर रहता है।

निर्मला बहन गुरुवार को हरमू में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रही थीं। उन्होंने कहा कि मनुष्य की मनःस्थिति उसके मुखमण्डल पर प्रकट होती रहती है, जो उसके मन में होता है। वही उसके शब्दों, कार्यों और व्यवहार से प्रकट होता रहता है। केवल सत्य ही असत्य को. प्रेम ही क्रोध को, सहिष्णुता और संयम हिंसा को शांत करते हैं। उन्होंने कहा कि विवेक से ही मनुष्य की हीन वृत्तियां और निन्दनीय वासनाएं शांत हो सकती हैं। ईर्ष्या, द्वेष, भय, क्रोध, वासना ये सभी मन: शांति को भंग करने वाले शत्रु हैं। इन्हें आत्म नियंत्रण द्वारा वश में रखने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राजयोग के अभ्यास और शुभ-चिन्तन द्वारा मन को वश में रखने की क्षमता विकसित होती है और मनुष्य बड़ी से बड़ी कठिनाई में भी शांति बनाये रखता है। शांति वाह्य संसार में खोजने से मिलने वाली वस्तु नहीं है, बल्कि यह मन के गुप्त प्रदेश में रहने वाली संतुलित स्थिति है। उन्होंने कहा कि राजयोग के सतत् अभ्यास से आन्तरिक दृष्टा बनकर इसे सहजता से प्राप्त किया जा सकता है। दया, क्षमा, सहनशीलता, उदारता और निष्काम प्रेम के अभाव में आज सर्वत्र संघर्ष, कलह, और अशांति का साम्राज्य दिखाई देता है। आज आपाधापी में मनुष्य अपने सभी काम जल्दबाजी में करता है। उतावलेपन से काम करने पर मनुष्य की मानसिक शक्ति नष्ट होती है। इसके विपरीत वह जिस काम को प्रसन्नता के साथ करता है, उससे उसकी मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है। स्थिर मन द्वारा ही विभिन्न प्रकार की विचारधाराओं पर नियत्रंण रखने से ही मनुष्य को अपने कार्यों में सफलता मिल सकती है।

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