JoharLive Desk

मुंबई बाॅलीवुड में भूमि पेडनेकर ने फिल्मों में बतौर अभिनेत्री नहीं, बल्कि कास्टिंग डायरेक्टर के तौर पर कदम रखा था। साल 2015 की फिल्म ‘दम लगाके हईशा’ के लिए ऑडिशन देने से पहले वह असिस्टेंट कास्टिंग डायरेक्टर थीं।

कितनी अलग है एक्टिंग से पहले और बाद की दुनिया? भूमि बताती हैं, ‘मैंने बतौर कास्टिंग डायरेक्टर अपने संघर्ष के दिनों में काम किया था। वह एक संरक्षण के दायरे में रहने वाला काम था। साथ काम करने वाले सभी लोग उत्साह बढ़ाते रहते थे। मुझे लगता है कि मैं इस मायने में बेहद खुशकिस्मत हूं। जिस किस्म का महत्व आज महिलाओं को मिल रहा है, वह पहले कभी नहीं मिला। शायद यही वजह है कि आज महिला प्रधान फिल्में ज्यादा बन रही हैं। यह एक बड़ा बदलाव है। फिल्म इंडस्ट्री अब बेहद प्रोफेशनल हो चुकी है।’

वह कहती हैं, ‘फिल्म बनाने वाले अब यह समझ चुके हैं कि अच्छी कहानियों का कोई विकल्प नहीं है। आपको दर्शकों के लिए ऐसी कहानियां और किरदार तलाशने ही होंगे, जो लंबे समय तक याद रखे जा सकें। औसत फिल्मों का दौर अब जा चुका है। हां, कुछेक अपवाद हो सकते हैं कि औसत फिल्में भी अच्छी कमाई कर लेती हैं, पर अब ज्यादातर मामलों में ऐसा नहीं होता। अब गुणवत्ता का स्तर बहुत ऊपर जा चुका है।’

भूमि जो कह रही हैं, उसे कितनी गंभीरता से लेती हैं, यह बात उन फिल्मों से जाहिर होती है, जिनका चयन वह कर रही हैं। उनकी पहली फिल्म ‘दम लगाके हईशा’ से लेकर ‘टॉयलेटरू एक प्रेमकथा’, ‘शुभ मंगल सावधान’ जैसी फिल्में एकदम अलग हट कर थीं। अब तक भूमि ने ऐसी किसी भी फिल्म में काम नहीं किया, जिसमें उनका किरदार कमजोर रहा हो। आखिर क्या पैमाने हैं उनके? किस आधार पर वह किसी फिल्म में काम करने के लिए हामी भरती हैं? बकौल भूमि, ‘ऐसी कोई विशेष प्रक्रिया नहीं है। मैं बस स्क्रिप्ट पढ़ती हूं और अपने दिल की आवाज सुनती हूं। बस, मुझे पता लग जाता है कि किस फिल्म में काम करना है और किस में नहीं। फिल्म का निर्देशक कौन है, इस बात से मुझे बहुत फर्क नहीं पड़ता। मुझे ऐसे कई निर्देशकों के साथ काम करने का सौभाग्य मिला, जो बेहद प्रतिभाशाली हैं और जिनकी पहली फिल्म का प्रस्ताव मुझे मिला था। मुझे प्रयोग करते रहना पसंद है।’

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