Ranchi : झारखंड विधानसभा का बजट सत्र आज से शुरू हो गया है. लेकिन भाजपा नेता प्रतिपक्ष का नाम अब तक तय नहीं कर सकी है. भाजपा की अंदरूनी हालत क्या है इससे समझा जा सकता है. पार्टी की ओर से यह संकेत दिया गया था कि बजट सत्र तक नेता का नाम तय कर लिया जाएगा. साथ ही यह उम्मीद थी कि इस बार नेता का चयन हो जाएगा. लेकिन यह नहीं हुआ.
बता दें कि नेता प्रतिपक्ष के साथ-साथ मुख्य सचेतक और सचेतक का चयन भी किया जाना है. पर नेता प्रतिपक्ष नहीं चुने जाने की वजह से इनका भी चयन नहीं हो सका. तीन महीने में भी नेता का चयन नहीं होना गंभीर मामला है. इसके साथ ही आलोचना के लिए विपक्ष को भी मौका मिल गया है.
विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से भी भाजपा सबक लेती नहीं दिख रही है. लगता है अभी और दुगर्ति होनी बांकी है. जिसपर केंद्रीय नेतृत्व ने भी ध्यान देना छोड़ दिया है. पार्टी रामभरोसे हो गई है. आलम यह है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी बेअसर हो गया है.
विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी यह तय नहीं कर पा रही है कि विधायक दल का नेता किसको बनाया जाए. पूर्व मुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी का चेहरा आगे किए जाने, झामुमो के दिग्गज नेता चंपाई सोरेन को भाजपा में शामिल किए जाने सहित तमाम कोशिशों के बावजूद आदिवासी वोटरों का साथ नहीं मिला. ऐसे में पार्टी अब अपनी रणनीति बदलकर झारखंड में आगे बढ़ना चाहती है.
मिली जानकारी के अनुसार ओबीसी, दलित व जनरल पर फोकस कर कोर वोटरों को अपने साथ रखने की इनकी रणनीति है. लेकिन इसमें भी देर हो रही है. वर्तमान राजनीतिक स्थिति में आदिवासी वोटरों का साथ आगे भी मिलना कठिन है. नेता प्रतिपक्ष का चुनाव नहीं होने से विधायकों व कार्यकर्ताओं में भी निराशा है. सब केंद्रीय व प्रदेश नेतृत्व को कोस रहे हैं.
नेता नहीं चुने जाने के मामले में भाजपा को विपक्ष भी घेर रहा है. कह रहा है कि तीन महीने में नेता नहीं चुन सके. अब सरकार का विरोध करने की हिम्मत कहां हैं. स्पीकर रवींद्र नाथ महतो भी इस मुद्दे पर गंभीर टिप्पणी कर चुके हैं. इस मुद्दे पर भाजपा बैकफुट पर है. कई स्तर पर इसकी आलोचना भी हो रही है. इस बजट सत्र के दौरान सदन में भी भजपा नेताविहन रहेगी साथ ही मौजूदा सरकार को घेरना मुश्किल होगा. आम लोग भी कह रहे हैं कि तीन महीने में पार्टी नेता तक नहीं चुन सकी है. इससे हालात का पता चलता है. पार्टी को जल्द ही कोई फैसला लेना पड़ेगा. अब देखने वाली बात ये होगी कि पार्टी आखिर क्या फैला लेती है और नेता प्रतिपक्ष का ताज किसके सर सजता है.
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