Joharlive Team
रांची। झारखंड विकास मोर्चा सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी 14 साल का वनवास काटने के बाद जल्द ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में घर वापसी करेंगे। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में बाबूलाल मरांडी और प्रदेश भाजपा दोनों को ही एक दूसरे की जरूरत है। भाजपा झारखंड में एक मजबूत आदिवासी चेहरा के बूते अपना जनाधार बढ़ाना चाह रही है।
झारखंड विधानसभा चुनाव में सत्ता गंवाने के बाद भाजपा अभी से अपनी जमीन मजबूत करने में लगी है। इसके लिए झाविमो के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी को भाजपा में शामिल करने की कवायद चल रही है। झाविमो पार्टी का भाजपा में विलय कराने के लिए दिल्ली में अंतिम रूपरेखा बन चुकी है। इसकी औपचारिक घोषणा करने के लिये बाबूलाल मरांडी एक बड़ी रैली कराने की तैयारी कर रहे हैं। इस रैली में भाजपा के बड़े नेताओं के मौजूद होने के संभावना है।
अभी हाल में ही दिल्ली में हाईप्रोफाइल मीटिंग हुई जिसमें भाजपा के कई बड़े नेताओं ने शिरकत की हाईप्रोफाइल मीटिंग में भाजपा के कई बड़े नेताओं ने शिरकत की। इस बैठक में भाजपा ने झारखंड में आदिवासी नेता की जरूरत पर विचार किया गया। बाबूलाल को लेकर आम चर्चा है कि कि मरांडी हर बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद पार्टी बदल लेते हैं।
इससे उनको कई बार नुकसान झेलना पड़ा है। वहीं, भाजपा में दिग्गज आदिवासी नेता अर्जुन मुंडा केन्द्र की राजनीति में सक्रिय रहने से प्रदेश में सशक्त आदिवासी नेता की जरूरत है। राज्य के 28 एसटी सीटों में 26 हार चुकी भाजपा को राज्य में एक मजबूत आदिवासी नेता की तलाश है।81 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने वाली झाविमो केवल तीन सीट जीत सकी।
ऐसे में भाजपा और मरांडी दोनों ही एक-दूसरे में अपना भविष्य देखने लगे हैं।
झाविमो के भाजपा में विलय करने में संवैधानिक रूप से बाधा बनने वाले विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। बाबूलाल मरांडी जल्द ही झाविमो की केन्द्रीय कार्य समिति की बैठक कर भाजपा में विलय पर मुहर लगा सकते हैं। इसके बाद ही भाजपा में विलय होने का रास्ता साफ हो जायेगा।
चर्चा है कि बाबूलाल मरांडी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की टीम में बतौर उपाध्यक्ष शामिल हो सकते हैं। हालांकि भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी उन्हें सदन में विपक्ष का नेता बनाने के मूड में है, लेकिन अभी तक विपक्ष का नेता बनने के लिए मरांडी ने सहमति नहीं दी है।
भाजपा ने अभी अपने विधायक दल के नेता पद को होल्ड पर रखा है। लक्ष्मण गिलुवा के त्यागपत्र देने के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का पद भी रिक्त है। अप्रैल में राज्यसभा के चुनाव में भाजपा अपने किसी मजबूत नेता को यहां से भेजना चाहेगी। इन तीनों महत्वपूर्ण पदों के सामने होने के बावजूद बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि वे न तो अपने लिए और न ही पार्टी के अन्य नेताओं के लिए किसी पद की इच्छा रखते हैं। उन्हें यह भी मालूम है कि 14 वर्ष के बाद भाजपा में आने के बाद विधायक दल के नेता पद या प्रदेश अध्यक्ष पद लेने पर कई वरीय नेता असहज महसूस करेंगे, जिससे काम करने में कठिनाई होगी।