स्वामी दिव्यज्ञान

रांची : देशभर में दो महीने तक चलने वाले लोकसभा चुनाव में महज कुछ दिन ही बचे है. ऐसे में सियासत गरमाई है. झारखंड में बीजेपी और आजसू ने पहले ही सभी लोकसभा क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. बात करें इंडिया एलायंस की तो अपने मजबूत और सक्षम उम्मीदवारों की घोषणा करने के अपने लक्ष्य पर कायम रहना महत्वपूर्ण है जो अपने विरोधियों को कड़ी टक्कर दे सकें. ऐसे में अगर इंडिया गठबंधन मजबूत उम्मीदवार उतारता है और एकता बनाए रखता है तो झारखण्ड में 50% से अधिक सीटें तक जीतने की क्षमता रखता है और सभी सीटों पर कड़ी टक्कर दे सकता है.

एक दूसरे को जाल में फंसाने की संभावना

ऐसी भी खबरें हैं कि बीजेपी और एनडीए पेशेवर यह सुनिश्चित करने के लिए सामरिक तरीके से काम कर रहे हैं कि इंडिया अलायंस कमजोर उम्मीदवारों को मैदान में उतारे. इसे अप्रत्यक्ष रूप से इंडिया अलायंस के विरोधियों को प्रायोजित करने के कदम के रूप में देखा जा सकता है. हालांकि इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती, लेकिन यह एक संभावना है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. ऐसे में इंडिया एलायंस के लिए जरूरी है कि वह सतर्क रहे और ऐसे जाल में फंसने से बचें. इसका विपरीत भी हो सकता है कि एनडीए के विरुद्ध इंडी अलायंस भी ऐसा काम कर सकता है.

दागी उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर हेराफेरी की कोशिश

सूत्रों के मुताबिक एक और मुद्दा है जिसने झारखण्ड एवं पूरे भारत के चुनाव विशेषज्ञों का ध्यान खींचा है. ऐसी चर्चाएं हैं कि किसी विशेष गठबंधन या पार्टी के थिंक टैंक एवं उनके द्वारा किराए पर लिए गए पेशेवर विपरीत पार्टी से समजाति के दागी उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर चुनाव में हेरफेर करने की कोशिश कर सकते हैं. इस रणनीति का उद्देश्य जनता को अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट देने के लिए मजबूर करना है, जिससे मतदाताओं में असहायता की भावना पैदा हो. ऐसी चर्चाएं झारखंड की एक दो लोकसभा सीटों पर उठी हैं और राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई हैं.

एक अन्य महत्वपूर्ण कारक जो चुनाव अभियान को बना या बिगाड़ सकता है वह है गठबंधन के भीतर एकता. इंडिया अलायंस को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके गठबंधन के सभी दल एक ही पृष्ठ पर हों और एक सामान्य लक्ष्य “चुनाव जीतने” की दिशा में काम करें, जैसा झारखंड के विधानसभा चुनाव में यह स्पष्ट देखा गया था राजद झामुमो और कांग्रेस के कार्यकर्त्ता तत्कालीन यूपीए गठबंधन के अधिकृत उम्मीदवारों को वोट करते आए. आंतरिक संघर्ष और असहमति ही उनकी सफलता की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकती है, चतरा,कोडरमा एवं पलामू में इसके आसान प्रतीत हो रहे हैं.

कौन सी पार्टी सत्ता में आएगी, छिड़ी बहस

भारत में आगामी चुनावों ने इस बात पर बहस छेड़ दी है कि कौन सी पार्टी सत्ता में आएगी. गठबंधन बनने के साथ ही इस बात को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं कि इंडी गठबंधन के उम्मीदवार कौन होंगे झारखंड में एनडीए गठबंधन के सभी लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है. एक पत्रकार के रूप में, यह हमारा कर्तव्य है कि हम दोनों पक्षों के मजबूत दावेदारों का निष्पक्ष विश्लेषण प्रस्तुत करें.

 इंडिया गठबंधन में चतरा सीट राष्ट्रीय जनता दल के खाते में

स्थानीयता का फॉर्मूला:  सत्यानंद भोक्ता का प्रभाव चतरा चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर दे  सकता है!

चतरा लोकसभा में कद्दावर कैबिनेट मंत्री सत्यानंद भोक्ता मजबूत दावेदार हो सकते हैं, चतरा संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र है पांच में से तीन पर इंडिया गठबंधन का कब्जा है. ये राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर जीते विधायक हैं. उन्हें कोलवरी विस्थापन आंदोलन का उत्पाद माना जाता है उनके क्षेत्र में इसका सकारात्मक प्रभाव है. मंत्री के तौर पर उनकी नजर चतरा लोकसभा सीट पर पहले से ही रही और विकास करने का प्रयास उन्होंने मंत्री रहते रहते किया भी.

झारखंड के कैबिनेट मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने अपने निर्वाचन क्षेत्र और चतरा जिले में विभिन्न विकास परियोजनाएं लागू की हैं. हालांकि, लोग उनके काम के बारे में जानते हैं या नहीं और उनका समर्थन करते हैं या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वह चुनावों के दौरान खुद को कितनी अच्छी तरह प्रचारित करते हैं. यदि वह ‘राजद’ से टिकट हासिल करने और अपनी उपलब्धियों को प्रभावी ढंग से उजागर करने में सफल हो जाते हैं, तो वह भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकते हैं.

सरयू राय की प्रेरक यात्रा : मुख्यमंत्री को हराने से लेकर न्याय की लड़ाई तक धनबाद में मचा सकता है तहलका

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से शुरुआत करने वाले सरयू राय कई जगहों पर बीजेपी के साथ रहे हैं. वह वर्तमान में जमशेदपुर पूर्व से निर्दलीय विधायक हैं और उन्होंने भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को भारी जीत से हराया था. सरयू राय को काफी हद तक ईमानदारी का प्रतीक माना जाता है और दामोदर नदी बचाओ आंदोलन में उनकी भागीदारी उन्हें एक उत्साही पर्यावरणविद् भी साबित करती है. हाल ही में उन्होंने ढुल्लू महतो के खिलाफ 49 मामलों की सूची जारी की है और उन्हें कृष्ण अग्रवाल जैसे मारवाड़ी समुदाय के प्रमुख नेताओं से समर्थन मिला है. एक बार फिर जब वे ढुल्लू महतो के खिलाफ खड़े हुए तो मीडिया में व्यापक कवरेज हुई. यदि सरयू राय गठबंधन की रणनीति का उपयोग करते हैं, तो धनबाद सीट पर उनकी जीत की पूरी संभावना होगी.

आपसी रंजिश से जेएमएम को होगा फायदा

सूत्रों के मुताबिक धनबाद इलाके में राजपूत समाज के दो सत्ता के खेमे एक रघुकुल दूसरा सिंह मेंशन मैं बहुत बड़ी आपसी रंजिश है सरयू राय जैसे कद्दावर प्रतिष्ठित नेता के नाम पर ये दोनों खेमे एक हो सकते हैं. झामुमो के कद्दावर नेता सुप्रीयो भट्टाचार्य, सरयू राय के पक्ष में यह बात बोल चुके हैं कि अगर कांग्रेस उन्हें धनबाद लोकसभा का प्रत्याशी बनती है तो झामुमो पूरी तरह से सहयोग करेगा. सरयू राय के इंडिया गठबंधन में शामिल हो जाने से जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र में झारखंड मुक्ति मोर्चा उम्मीदवार का पक्ष बहुत मजबूत हो जाएगा.

आस्तिक महतो जमशेदपुर लोकसभा चुनाव से हो सकते हैं ‘गेमचेंजर’

आस्तिक की जमशेदपुर लोकसभा में सामुदायिक भागीदारी और जमशेदपुर के लोगों के मुद्दों का समझ भी उनके लाभ के लिए काम कर सकती है. वह क्षेत्र में विभिन्न विकासात्मक परियोजनाओं पर सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं और अलग झारखंड राज्य आंदोलन में भी एक नेता थे, जिससे उन्हें स्थानीय लोगों के बीच सम्मान मिला. लेकिन जो बात इस दौड़ को और भी दिलचस्प बनाती है वह यह है कि आस्तिक और विद्युत दोनों एक ही समुदाय ‘कुर्मी’ से हैं. इससे पारंपरिक कुर्मी वोट बैंक संभावित रूप से विभाजित हो सकता है, जो हमेशा से भाजपा का गढ़ रहा है. आस्तिक के इंडिया एलायंस के उम्मीदवार के तौर पर जमशेदपुर लोकसभा से मैदान में उतरने से कुर्मी वोटों में बिखराव की प्रबल संभावना है. जबकि परंपरागत रूप से कुर्मी भाजपा के मतदाता रहे हैं, आस्तिक की उपस्थिति के साथ, कुछ लोग झारखंड मुक्ति मोर्चा या भारत गठबंधन को वोट दे सकते हैं. दूसरी ओर, 70-80% आदिवासी मतदाता झारखंड मुक्ति मोर्चा के पारंपरिक समर्थक हैं, जबकि 99% ईसाई और मुस्लिम मतदाता इंडिया गठबंधन का समर्थन करने की संभावना रखते हैं. ऐसे में आस्तिक की मौजूदगी बीजेपी प्रत्याशी विद्युत वरण महतो को कड़ी टक्कर देती है.

टिकट मिलने की संभावना: महावीर मुर्मू या कुणाल सारंगी को

 इंडी गठबंधन में रांची लोकसभा सीट कांग्रेस के हिस्से में

रामटहल चौधरी को टिकट देने से कांग्रेस की ओर खींच सकते हैं कुर्मी वोटर  

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पांच बार के सांसद रामटहल चौधरी के इंडी गठबंधन में शामिल होने की हालिया खबरों से भारतीय राजनीतिक परिदृश्य गर्म हो गया है. इस कदम से खासकर रांची लोकसभा क्षेत्र में हलचल मच गई है, जहां चौधरी का कुर्मी समुदाय काफी प्रभाव रखता है. अपनी नई संबद्धता के साथ, चौधरी भाजपा उम्मीदवार संजय सेठ के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं, जो संभावित रूप से आगामी चुनावों में राजनीतिक गतिशीलता को बदल सकता है. इस विकास और भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में गहराई से समझने की आवश्यकता  है, रामटहल चौधरी अपना इमोशनल कार्ड खेल सकते हैं कि यह मेरा आखिरी मौका है. स्थानीय सांसद संजय सेठ के खिलाफ विशेष कर रांची ग्रामीण इलाकों में कुछ विरोध देखने को मिला है, ऐसे में अगर रामटहल चौधरी को भारतीय जनता पार्टी रांची का उम्मीदवार बनाया जाता है तो एक बड़ी घटना होगी, जो असंतुष्ट भारतीय जनता पार्टी के लोग हैं या कुर्मी समाज के लोग हैं वह रामटहल चौधरी को अधिक वोट करेंगे अपेक्षाकृत  दूसरे जाती के उम्मीदवार के.

 सूत्रों के मुताबिक इंडिया गठबंधन से सुबोध कांत सहाय को टिकट मिलने की सर्वाधिक संभावना है

इंडी गठबंधन में गोड्डा लोकसभा सीट कांग्रेस के हिस्से में

कांग्रेस के पावर प्लेयर: प्रदीप यादव हो सकते हैं इंडिया गठबंधन के सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार!

कभी भारतीय जनता पार्टी से सांसद रहे प्रदीप यादव अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. इस बार वह इंडियन अलायंस के उम्मीदवार हैं और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. अपने क्षेत्र में बड़ी संख्या में यादव वोटर होने के कारण प्रदीप यादव मौजूदा बीजेपी सांसद और उम्मीदवार निशिकांत दुबे को कड़ी टक्कर दे सकते हैं.  पिछले चुनाव में भी प्रदीप यादव गोड्डा लोकसभा से कांग्रेस के उम्मीदवार थे.  बीजेपी प्रत्याशी निशिकांत दुबे ने ऐलान किया है कि अगर प्रदीप यादव कांग्रेस के उम्मीदवार बनते हैं तो वह सिर्फ वरिष्ठ नेताओं के साथ ही मंच साझा करेंगे और किसी भी निजी रैली को संबोधित नहीं करेंगे. अगर इंडियन अलायंस यहां प्रदीप यादव को अपना उम्मीदवार बनाता है तो वह बीजेपी के निशिकांत दुबे को कड़ी टक्कर दे सकते हैं. क्योंकि अगर निशिकांत दुबे प्रचार प्रसार में लग जाते हैं तो झूठ कहलाते हैं और नहीं लगते हैं तो प्रदीप यादव को काफी सहूलियत मिल सकती है.

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