रांची: आज का दिन झारखंड की राजनीति के लिहाज से बेहद खास है. आज के दिन राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी का जन्मदिन है. जेएमएम के अध्यक्ष शिबू सोरेन अपना 78वां जन्मदिन मना रहें हैं तो वहीं, बीजेपी के नेता भी अपने विधायक दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का जन्मदिन मना रहे हैं.
शिबू सोरेन का जन्मदिन:
दिशोम गुरु के जिक्र के बिना झारखंड की चर्चा पूरी नहीं हो सकती. शिबू सोरेन को आदिवासियों के बड़े नेता के रूप में जाना जाता है. उनका जन्म रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में 11 जनवरी 1944 को हुआ. उन्होंने ने दसवीं तक पढ़ाई की. शिबू सोरेन ने रूपी सोरेन से विवाह किया और उनके 4 बच्चे हैं. इसमें सबसे बड़े बेटे दुर्गा सोरेन का निधन हो चुका है. हेमंत सोरेन, बसंत सोरेन और अंजली सोरेन उनकी विरासत संभाल रहे हैं.
शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर:
शिबू सोरेन के पिता सोबरन मांझी शिक्षक थे. सूदखोरी और शराबबंदी का विरोध करने पर महाजनों ने 27 नवंबर 1957 को उनकी हत्या करवा दी. इसके बाद शिबू सोरेन ने आदिवासी हितों के लिए संघर्ष शुरू किया. 1970 में उन्होंने महाजनों के खिलाफ धान काटो आंदोलन चलाया. आदिवासियों की जमीन को धोखे से हड़पने वाले जमींदारों के खेतों की फसल को वो सामूहिक ताकत के दम पर काटने लगे. इसके बाद उन्होंने साल 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन फैसला लिया. इसी दौरान उन्होंने अलग झारखंड आंदोलन को फिर से हवा दी. 25 जून 1975 को जब आपातकाल की घोषणा हुई तो इंदिरा गांधी ने उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया था. शिबू सोरेन ने तब आत्मसमर्पण कर दिया.
तीन बार संभाली मुख्यमंत्री की कुर्सी:
1977 में शिबू सोरेन सियासत की तरफ मुड़े लेकिन टुंडी से विधानसभा चुनाव हार गए. फिर उन्होंने संताल को अपनी कर्मभूमि चुना. 1980 में उन्होंने दुमका से पहली बार लोकसभा चुनाव जीता और झारखंड मुक्ति मोर्चा के पहले सांसद बने. वो यहां से 8 बार सांसद रह चुके हैं. 2002 और 2020 में वे दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे. यूपीए सरकार में 23 मई 2004 को शिबू सोरेन कोयल और खनन मंत्री बनाए गए थे. उन्होंने तीन बार झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री पद भी संभाला लेकिन कभी भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. विधानसभा चुनाव 2005 में राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने का न्योता भेजा.
2 मार्च 2005 को वे सीएम बनाए गए लेकिन जरूरी विधायकों की संख्या नहीं हासिल करने पर 10 दिन बाद ही 12 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद सांसद रहते हुए शिबू सोरेन 27 अगस्त 2008 को दोबारा सीएम की गद्दी पर बैठे. लेकिन एक परीक्षा अब भी पास करना बाकी था. झटका तब लगा जब वे 8 जनवरी को तमाड़ विधानसभा उपचुनाव हार गए. नतीजतन 144 दिनों बाद 18 जनवरी 2009 को सरकार गिर गई और झारखंड में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. शिबू सोरेन को तीसरी बार सीएम बनने का मौका 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक 152 दिनों के लिए मिला. तब बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और राज्य में दूसरी बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा.
बाबूलाल मरांडी का जन्मदिन: झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी का जन्म 11 जनवरी 1958 को गिरिडीह जिले के कोडिया बैंक गांव में हुआ था. वह झारखंड विकास मोर्चा के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे, उनकी पार्टी जेवीएम का अब बीजेपी में विलय हो चुका है. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वह वन और पर्यावरण मंत्री रहे. बाबूलाल मरांडी विश्व हिंदू परिषद के आयोजन सचिव के पद पर भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. 1983 में दुमका चले जाने के बाद बाबूलाल मरांडी ने अपनी शुरूआती जीवन आरएसएस मुख्यालय में व्यतीत किया. 2007 में हुए एक नक्सल हमले में बाबूलाल मरांडी के एक बेटे की मृत्यु हो गई थी.
बाबूलाल मरांडी का राजनीतिक सफर: किसान परिवार में जन्मे बाबूलाल मरांडी ने गिरिडीह के देवरी में प्राथमिक विद्यालय में बतौर शिक्षक नौकरी की. फिर विभागीय अधिकारियों से कुछ ऐसी बात हो गई कि शिक्षक बाबूलाल मरांडी ने राजनीति की राह पकड़ ली. संघ में सक्रिय होने के बाद बाबूलाल मरांडी साल 1990 में बीजेपी के संथाल परगना के संगठन मंत्री के रूप में काम किया. दो बार दिशोम गुरु से चुनावी समर में पराजित होने के बाद साल 1998 में उन्होंने शिबू सोरेन को और फिर 1999 में उनकी पत्नी रूपी सोरेन को हराकर अपनी राजनीतिक धाक जमाई. 1999 में अटल जी की सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया. झारखंड राज्य अलग होने पर 2000 में बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने. 2003 में पार्टी में विरोध के कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा. 2006 में उन्होंने बीजेपी छोड़कर अपनी झारखंड विकास मोर्चा नाम से पार्टी बना ली. 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा ने चुनाव लड़ा. 2009 में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर बाबूलाल की पार्टी जेवीएम ने चुनाल लड़ा. फरवरी 2020 उन्होने अपनी पार्टी जेवीएम का बीजेपी में विलय कर दिया और बीजेपी विधायक दल के नेता चुने गए.