Joharlive Desk

पटना । केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राए….। इस गीत के साथ हाजीपुर के केले की याद बरबस सभी को आ ही जाती है। छठ के मौके पर हाजीपुर के केले का कुछ अलग ही महत्व है। इसके मिठास का पूरा देश दीवाना है। वैसे तो आज बाजार में सिंगापुरी केले ने भी अपनी जगह बना ली है, मगर हाजीपुर के केले की डिमांड बाजार में सबसे अधिक बनी रहती है।

छठ पर्व पर में हाजीपुर के केला को लेकर बाजार पहले से ही सजने लगता है। गंगा किनारे होने वाले इस केले की इतनी अच्छी पैदावार यहां के व्यवसायी करते हैं कि इनके पूरे साल की कमायी एक फसल से हो जाती है। इतना ही नहीं इसके अलावा लगभग पूरे साल केले की मांग बनी रहती है, जबकि ठंड के मौसम में इसकी मांग थोड़ी कम जाती है। लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के लिये केले की खरीदारी बड़े पैमाने पर की जाती है। जो सामर्थ्यवान हैं वो पूरे घवद को खरीदते हैं जबकि जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है, वह एक-दो दर्जन केले को ही अपनी पूजा में शामिल करते हैं। वैसे केला अब देश के कई हिस्सोंं में भी उपजाया जाने लगा है, परंतु हाजीपुर के केले का स्वाद अलग होने की वजह से इसकी डिमांड हमेशा बनी रहती है।
वैशाली जिले के बिदुपुर, हाजीपुर, राघोपुर, लालगंज प्रखंड क्षेत्र मुख्यत: केला उत्पादक हैं और इन प्रखंडों के विभिन्न स्थानों से रोज दर्जनों ट्रक केला अन्य प्रदेशों के लिए जाता है। पटना से हाजीपुर को जोड़ने वाले गांधी पुल पर ही केले बेचते लोग मिल जाते हैं। केला के किस्मों में मालभोग काफी मशहूर माना जाता है और इसकी खेती बिहार के हाजीपुर में बड़े पैमाने पर की जाती है। यहां के केले का दाम अन्य केलों के मुकाबले से आठ से दस गुना ज्यादा और स्वाद में कई गुना अलग होता है। केला की मांग हमेशा बनी रहती है लेकिन छठ पर्व के मौके पर यहां के केले की डिमांड बढ़ जाती है। हाजीपुर केले की आपूर्ति कम होने पर सिंगापुरी केला लोगों की मांग की भरपायी करता है।

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