New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि पति की मर्जी के खिलाफ महिला अगर अपनी मर्जी से वैध कारणों के आधार पर अलग रहती है तो भी वह गुजारा भत्ता की हकदार है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अगुआई वाली बेंच के सामने यह कानूनी सवाल था कि क्या एक पति जिसने दांपत्य जीवन बहाल करने के मामले में अपने फेवर में डिक्री यानी फैसला हासिल किया है, वह CRPC की धारा-125 के तहत अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से बच सकता है? अगर पत्नी डिक्री के बावजूद पति के साथ रहने से इनकार करती है और वह अपने पति के साथ रहने को तैयार नहीं है तो भी क्या वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार है?
सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अगर पत्नी के पास वैध और पर्याप्त कारण हैं, तो वह दांपत्य जीवन बहाल करने के लिए पति के फेवर में डिक्री होने के बाद भी उस डिक्री का पालन न करने के बावजूद वह भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार रखती है। दरअसल, हिंदी मैरिज एक्ट की धारा-9 के तहत पति अपने वैवाहिक अधिकार को बहाल करने के लिए अर्जी दाखिल कर सकता है ताकि उसका दांपत्य जीवन बहाल हो सके।
किस मामले में की टिप्पणी?
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मौजूदा मामले में इस बात को संज्ञान में लिया कि पति ने उस वक्त अपनी पत्नी की अनदेखी की जब उसका गर्भपात हुआ था। इस दौरान महिला के साथ उसके पति ने अच्छा व्यवहार नहीं किया। इस कारण अदालत ने माना कि पत्नी के पास इस बात के वैध कारण थे कि वह पति के साथ रहने से इनकार कर दे। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान साफ कर दिया कि दांपत्य जीवन बहाल करने के लिए पति के फेवर डिक्री पारित होने से वह शख्स अपनी पत्नी को भरण पोषण देने से मुक्त नहीं हो सकता है।
महिलाओं को अधिकारों से वंचित नहीं कर सकते
शीर्ष अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा-125 का प्रावधान महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए नहीं है, बल्कि उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए पत्नी की अपील स्वीकार की और फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को बहाल कर किया। इसमें पति को 10,000 रुपये प्रति महीने भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को पलट दिया था जिसे महिला ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
गुजारा भत्ता जरूरी ताकि सम्मानजनक जीवन मिले
अगर शादी के बाद किसी कारण दंपती में विभेद और अलगाव हो जाए तो गुजारा भत्ता दिए जाने का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में दिए एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि पति की ड्यूटी है कि वह अलग रह रही पत्नी को वित्तीय मदद दे। इसके लिए अगर उसे शारीरिक लेबर करना पड़े तो भी उसे यह करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सम्मानजनक जीवन जीने के लिए पर्याप्त गुजारा भत्ता जरूरी है। सीआरपीसी की धारा-125 सामाजिक न्याय के लिए प्रावधान करता है। यह फैसला आने वाले दिनों में नजीर बनेगा और महिलाओं को आर्थिक प्रोटेक्शन मिल सकेगा।
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