नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को खनिज समृद्ध राज्यों को एक महत्वपूर्ण वित्तीय राहत प्रदान करते हुए उन्हें केंद्र सरकार और पट्टा धारकों से एक अप्रैल 2005 से बकाया रॉयल्टी और कर वसूलने की अनुमति दे दी. यह फैसला मुख्य न्यायाधीश डीवाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया. इस निर्णय के तहत राज्य सरकारें अब खनिज युक्त भूमि पर बकाया रॉयल्टी और कर वसूल सकती हैं, लेकिन इसे अगले 12 वर्षों में चरणबद्ध तरीके से वसूला जाएगा. अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यों को पूर्वव्यापी मांगों पर जुर्माना या अतिरिक्त कर नहीं लगा सकता.
रॉयल्टी को कर की प्रकृति का बताया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 25 जुलाई 2024 का फैसला, जिसमें राज्यों के खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने की विधायी क्षमता को मान्यता दी गई थी, का पूर्वव्यापी प्रभाव होगा. यह निर्णय केंद्र सरकार द्वारा खनिज समृद्ध राज्यों की ओर से 1989 से खदानों और खनिज युक्त भूमि पर लगाई गई रॉयल्टी वापस करने की मांग वाली याचिका के विरोध के बावजूद आया. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि खनन पट्टाधारकों द्वारा केंद्र को दी जाने वाली रॉयल्टी कर नहीं है और खान व खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 राज्यों के कर लगाने के अधिकार को सीमित नहीं करता है. हालांकि, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने बहुमत के विचार से असहमति जताते हुए रॉयल्टी को कर की प्रकृति का बताया और कहा कि इससे राज्यों में खनन पट्टे प्राप्त करने के लिए अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा और खनन गतिविधियों में मंदी आ सकती है.