रांची: पूर्व मंत्री सह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने पीएम नरेंद्र मोदी पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने पीएम पर कटाक्ष करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी झूठ के साथ थोड़ा सच बोलते है. इसके अलावा मिर्च मसाला लगाकर जो बातें परोसते है उसमें उनका कोई जोड़ नहीं है. कांग्रेस के पाप-पुण्य का हिसाब-किताब करने की बजाय प्रधानमंत्री को आदिवासियों और गरीबों की सुध लेनी चाहिये. 10 साल में आदिवासियों के साथ ही मूलवासियों, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) आदि की स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो गयी है. अब उन्हें अपने भविष्य पर खतरा मंडराता हुआ साफ-साफ नजर आ रहा है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी माहिर खिलाड़ी
पलामू और सिसई में प्रधानमंत्री ने चुनावी सभा में कांग्रेस के ऊपर लगाये गये आरोपों की तीखी आलोचना की. साथ ही कहा कि केवल झूठ में तथ्यात्मक दृष्टि से थोड़ा सा आँकड़ा मिलाकर और शाब्दिक जाल बुनकर प्रधानमंत्री भले ही लोगों को भ्रमित कर लें. लेकिन सच यह है कि तीखी बोली, कटाक्ष और आपसी मतभेद को उत्पन्न करनेवाली बातों को बोलने के मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी माहिर खिलाड़ी हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने इस मामले में अबतक के सभी कीर्तिमानों को ध्वस्त कर दिया है. जिस प्रकार का वक्तव्य वे अपनी चुनावी सभाओं में दे रहे हैं उसके कारण प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद की मर्यादा कम हो रही है.
लोगों के बीच पैदा कर रहे दरार
बंधु तिर्की ने कहा कि प्रधानमंत्री के द्वारा जिस प्रकार की बातें कही जा रही है, वह पूरी तरीके से तथ्यों से परे है. कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहीं भी यह नहीं कहा कि किसी व्यक्ति के पास दो घर, दो भैंस, दो बैल आदि होने पर उसमें से एक को सरकार ले लेगी. उसे अन्य लोगों के बीच में बांट देगी. इसके साथ ही मंगलसूत्र की बातें भी केवल और केवल प्रधानमंत्री के खुराफाती मन की उपज है. ये सारी बातें लोगों के बीच में दरार पैदा कर रही है. प्रधानमंत्री मोदी खुल्लम-खुल्ला लोगों की भावनायें भड़काकर उनसे चुनावी लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं. दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनाव आयोग खामोशी के साथ इन सारी गतिविधियों को देख रहा है. उसका आचरण पूरी तरीके से पक्षपाती है. जबकि चुनाव आयोग की निष्पक्षता ही स्वस्थ लोकतंत्र की पहली शर्त है.
कथनी और करनी में है अंतर
प्रधानमंत्री सरना धर्म कोड, समान नागरिक संहिता (यूसीसी), आदिवासियों की परंपरागत जीवन पद्धति को बरकरार रखने, आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार, झारखण्ड का केन्द्र सरकार पर बकाया एक लाख 36 हज़ार करोड़ रुपया देने पर चुप्पी साधे है. वहीं कांग्रेस सरकार द्वारा संवैधानिक रूप से आदिवासियों के साथ ही अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) एवं अल्पसंख्यकों को दिये गये अधिकार के मामले में जिस प्रकार से खामोशी अख्तियार किये बैठे हैं. उससे साफ है कि भाजपा एक साजिश के तहत काम कर रही है. भाजपा किसी भी प्रकार से चुनाव जीतना चाहती है.
बीजेपी को जहाँ-जहाँ अवसर मिलता है वहीं उसने आदिवासियों के पक्ष में कांग्रेस द्वारा बनाये गये कानूनों एवं संवैधानिक प्रावधानों को आघात पहुँचाया है. झारखण्ड में भी उसने सीएनटी-एसपीटी एक्ट में बदलाव की साजिशे रची थी लेकिन लोगों के विरोध के कारण रघुवर दास सरकार को अपने कदम वापस लेने पड़े. छत्तीसगढ़ में चुनाव जीतने के लिये भारतीय जनता पार्टी ने डीलिस्टिंग का मुद्दा उठाया और इसके कारण सरना और ईसाई धर्मावलम्बियों के बीच धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने के बाद चुनाव तो जीत लिया. लेकिन जिस प्रकार से हंसदेव जंगल की 1 लाख 70 हज़ार हेक्टेयर भूमि को उज़ाड़ा गया है यह बताने को काफी है कि भारतीय जनता पार्टी की कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है.