By-Vinita Choubey
Deoghar Babadham: देवघर जिला बैद्यनाथ मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, साथ ही पर्यटन स्थलों (Tourist Place) से भी भरा-पूरा है. ये शहर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों दोनों को आध्यत्मिकता और प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव कराने के लिए आकर्षित करते है. देवघर अपने सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के कारण झारखंड की “सांस्कृतिक राजधानी” के रूप में भी जाना जाता है. तो चलिए बात करते है इस शहर के बारे में…आस-पास के पर्यटन स्थलों के बारे में…और बाबाधाम के बारे में…
ये मंदिर बाबाधाम, बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर या बैद्यनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध है. 12 ज्योतिर्लिंग में से बैद्यनाथ धाम को 9वां ज्योतिर्लिंग माना जाता है. साथ ही इस स्थल को भगवान शिव का पवित्र निवास स्थान भी माना जाता है. मंदिर परिसर में कुल 22 मंदिर है और केंद्र में बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर है. यहां हर साल सावन (श्रावणी मेला) के महीने में मेला लगता है. इस दौरान लाखों श्रद्धालु सुल्तानगंज की गंगा से दो पात्रों में जल लाते हैं. एक पात्र का जल वैद्यनाथ धाम देवघर में चढ़ाया जाता है, जबकि दूसरे पात्र से बासुकीनाथ में भगवान नागेश को जलाभिषेक करते हैं.
बाबाधाम मंदिर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जसीडीह है और सबसे नजदीकी एयरपोर्ट देवघर अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट है, जहां से बाबा बैद्यनाथ मंदिर की दूरी करीब 8.5 और 9.5 किमी. है. इन दोनों जगहों से मंदिर जाने के लिए ऑटो और टैक्सी की सुविधा मिल जाती है. ऑटो और टैक्सी वाले आपको मंदिर से मात्र 500-600 मीटर पहले टावर चौक पर ड्रॉप कर देते हैं, जहां से आप पैदल (Walk) बाबा बैद्यनाथ मंदिर के दर्शन करने जा सकते हैं.
बासुकीनाथ हिंदुओं के लिए एक लोकप्रिय पूजा स्थल है. लाखों तीर्थयात्री हर साल देश के सभी हिस्सों से मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने के लिए आते हैं. श्रावण के महीने में भव्य मंदिर में भीड़ काफी बढ़ जाती है, जहां न केवल स्थानीय और राष्ट्रीय पर्यटक बल्कि अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक भी यहां आते हैं. माना जाता है कि बासुकीनाथ मंदिर बाबा भोले नाथ का दरबार है. बासुकीनाथ मंदिर में शिव और पार्वती के मंदिर एक दूसरे के ठीक सामने स्थित हैं. इन दोनों मंदिरों के कपाट शाम को खुलते हैं और माना जाता है कि इसी समय भगवान शिव और माता पार्वती एक दूसरे से मिलते हैं. कहा जाता है कि बैद्यनाथ धाम की यात्रा बासुकीधाम में पूजा के बाद ही पूरी मानी जाती है.
रिखिया योग आश्रम देवघर शहर से लगभाग 10 किलोमीटर की दूरी पर रिखिया गांव में स्थित है. यहां महान आध्यात्मिक नेता और योग गुरू परमहंस सत्यानंद सरस्वती की तपोभूमी है, जो बिहार योगमूंगेर स्तूल के संस्थापक है. वे योग, तंत्र और आध्यात्मिक विज्ञान में अपने योगदान के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है.
बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर मुख्य मंदिर से सिर्फ 1.5 किमी दूर है. 146 फीट ऊंचा, यह मंदिर राधा-कृष्ण को समर्पित है. चूंकि इसके निर्माण में 9 लाख रुपए लगे थे, इसलिए इसे नौलखा (नौ लाख) मंदिर के रूप में भी जाना जाता है. यह मंदिर बेलूर के रामकृष्ण मंदिर से काफी मिलता-जुलता है. यह मंदिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता में पथुरिया घाट राजा के परिवार की रानी चारुशीला द्वारा बनवाया गया था. चारुशीला अपने पति और बेटे की मौत का शौक मना रही थी और उससे उबरने के लिए संत बालानंद ब्रह्मचारी ने उन्हें इस मंदिर के निर्माण की सलाह दी थी.
नंदन पहाड़ भारत के झारखंड में देवघर जिले में एक पहाड़ी की चोटी पर बना एक मनोरंजन पार्क है. यह एक पिकनिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है जहां सभी के लिए कई एक्टिविटीज मौजूद हैं.
यहां कोई भी जॉय राइड का मजा ले सकता है या क्षेत्र में बोटिंग कर सकता है या नंदी मंदिर में दर्शन कर सकता है. नंदन पहाड़ से सूर्यास्त का नजारा बेहद ही खुश कर देता है. मनोरंजन पार्क के अलावा नंदन पहाड़ में एक बगीचा, और एक तालाब भी है.
त्रिकुटा पर्वत (2,470 फीट ऊंचा) का नाम इस स्थान की स्थलाकृति के कारण रखा गया है. पहाड़ी में तीन मुख्य चोटियां हैं, इसलिए इसका नाम त्रिकुटा रखा गया है. देवघर से 24 किमी पश्चिम में त्रिकुट अपने पहाड़ी मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है. पहाड़ी में विशाल शिलाखंड हैं. दाईं ओर एक छोटा मंदिर है जहां देवी पार्वती की पूजा की जाती है. त्रिकुटी पहाड़ की तलहटी मयूराक्षी नदी से घिरी हुई है. यहां पर्यटकों के लिए रोप वे बनाया गया गया था, जिसे हादसे का बाद अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया है.
तपोवन मूल रूप से गुफाओँ और पहाड़ियों की श्रृंखला है. ये जगह लोकल लोंगो के लिए ट्रैकिंग और पिकनिक स्थल है. सीढ़ियों से 30 मिनट में पहाड़ी की चोटी पर पहंच सकते है. पहाड़ी की चोटी से आप मनोरम दृश्य का आनंद ले सकते है. यहां एक शिव का एक मंदिर भी है जो तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है. शिव के मंदिर को तपोनाथ महादेव कहा जाता है. कहा जाता है कि ऋषि वाल्मीकि यहां तपस्या के लिए आए थे.
देवघर बाबाधाम ज्योतिर्लिंग के साथ एक एक शक्तिपीठ भी है. तो आइए फिर आज बात करते है यहां की शक्तिपीठ की. कहा जाता है कि मंदिर में आने वाले भक्तों की इच्छा पूर्ण होती है. जिसके कारण इस मंदिर को “कामना लिंग” के नाम से भी जाना जाता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती के पिता राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. यज्ञ के बारे में पता चला तो देवी सती ने भी जाने की बात कही. भगवान शिव ने कहा कि बिना निमंत्रण जाना उचित नहीं, लेकिन सती ने कहा कि पिता के घर जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नहीं है. भगवान ने उन्हें कई बार समझाया लेकिन वो नहीं मानी और अपने पिता के घर चली गई. वहां जाने के बात उन्होंने भोलेनाथ का घोर अपमान देखा तो सहन नहीं कर पाईं और यज्ञ कुंड में प्रवेश कर गईं. सती की मृत्यु की सूचना पाकर भगवान शिव अत्यं त क्रोधित हुए और वह माता सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव करने लगे.
देवताओं की प्रार्थना पर आक्रोशित शिव को शांत करने के लिए श्रीहरि अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित करने लगे. सती के अंग जिस-जिस स्थान पर गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए. मान्यगता है इस स्थाान पर देवी सती का हृदय गिरा था. यही वजह है कि इस स्थान को “हार्दपीठ” के नाम से भी जाना जाता है. इस तरह यह देश का पहला ऐसा स्थान है जहां ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है. इस वजह से इस स्थान की महिमा और भी बढ़ जाती है.
यहां मंदिर की बनावट का जिक्र करना चाहेंगे जो आमतौर पर हम बचपन से देखते आए है कि हर शिव मंदिर में शिखर पर एक त्रिशूल लगा होता है, लेकिन बैद्यनाथ धाम मंदिर एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां भगवान शिव के मंदिर के शिखर पर त्रिशूल के स्थान पर “पंचशूल” लगा है. देवघर के बैद्यनाथ मंदिर परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण और अन्य सभी मंदिरों में पंचशूल लगे हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार पंचशूल को सुरक्षा कवच माना गया है. ये महाशिवरात्रि से दो दिन पहने उतारे जाते हैं और महाशिवरात्रि से एक दिन पहले विधि-विधान के साथ इन सभी पंचशूल की पूजा की जाती है और फिर वापस मंदिर शिखर पर स्थापित कर दिया जाता है. इस दौरान भगवान शिव और माता पार्वती के गठबंधन को भी हटा दिया जाता है.
बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर पंचशूल को लेकर मान्यता है कि त्रेता युग में रावण की लंका पुरी के प्रवेश द्वार पर सुरक्षा कवच के रूप में पंचशूल भी स्थापित किया गया था और सिर्फ रावण ही पंचशूल यानी सुरक्षा कवच को भेदना जानता था. भगवान राम के लिए भी पंचशूल के भेद पाना असंभव था, लेकिन विभीषण ने जब इसका रहस्य उजागर कर दिया तो भगवान श्री राम और उनकी सेना ने लंका में प्रवेश किया. मान्यता है कि पंचशूल के कारण मंदिर पर आज तक कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आई है.
भगवान शिव के भक्त रावण और बाबा बैजनाथ की कहानी बड़ी निराली है. पौराणिक कथा के अनुसार रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप कर रहा था. वह एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था. 9 सिर चढ़ाने के बाद जब रावण 10वां सिर काटने वाला था तो भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उससे वर मांगने को कहा.
तब रावण ने ‘कामना लिंग’ को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया. रावण के पास सोने की लंका के अलावा तीनों लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी ही साथ ही उसने कई देवता, यक्ष और गंधर्वो को कैद कर के भी लंका में रखा हुआ था. इस वजह से रावण ने ये इच्छा जताई कि भगवान शिव कैलाश को छोड़ लंका में रहें. महादेव ने उसकी इस मनोकामना को पूरा तो किया पर साथ ही एक शर्त भी रखी. उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को रास्ते में कही भी रखा तो मैं फिर वहीं रह जाऊंगा और नहीं उठूंगा. रावण ने शर्त मान ली. रावण शिवलिंग को लेकर श्रीलंका की ओर चला तो देवघर के पास उसे लघुशंका लगी. ऐसे में रावण एक बैजू नाम के ग्वाला (भगवान विष्णु का रूप) को शिवलिंग देकर लघुशंका करने चला गया.
कहते है कि रावण के पेट में गंगा समा गयी थी इसलिए वह लंबे समय तक लघुशंका करता रहा. इधर बैजू ने शिवलिंग को धरती पर रखकर इसे स्थापित कर दिया. जब रावण लौट कर आया तो लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया. तब उसे भी भगवान की यह लीला समझ में आ गई और वह क्रोधित शिवलिंग पर अपना अंगूठा गड़ाकर चला गया. उसके बाद देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की. शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी- देवताओं ने शिवलिंग की उसी स्थान पर स्थापना कर दी और शिव-स्तुति करके वापस स्वर्ग को चले गए. तभी से महादेव ‘कामना लिंग’ के रूप में देवघर में विराजते हैं. मंदिर के पास एक तालाब है जिसमें तीर्थयात्री स्नान करके बाबा को जल चढ़ाते हैं. इसी तालाब के पास दूसरा तालाब है जिसमें कोई स्नान या आचमन नहीं करता है क्योंकि इसे रावण के मूत्र से बना तालाब माना जाता है.
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