रांची: दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में विभिन्न राज्यों के कलाकारों ने आदिवासी जीवन और संस्कृति को कला के माध्यम से प्रस्तुत किया. महोत्सव के दौरान विभिन्न चित्रकला और पेंटिंग कलाकारों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया और आदिवासी जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाने का प्रयास किया.  इस महोत्सव में संताल परगना की पारंपरिक लोक चित्रकला जादो पटिया की प्रदर्शनी विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र रही. जादो पटिया पेंटिंग के माध्यम से संताल समाज के इतिहास, रहन-सहन और खान-पान को दर्शाया गया. इस कला कार्यशाला में नेशनल फेलोशिप अवार्डी नीलम नीरद, अर्पित राज नीरद, निताई चित्रकार, गणपति चित्रकार, दशरथ चित्रकार, दयानंद चित्रकार, जीयाराम चित्रकार जैसे प्रमुख कलाकार शामिल हुए. जादो पटिया और पटकर पेंटिंग की जानकारी डॉ. आरके नीरद ने दी.

55 कलाकार फाइन आर्ट्स के

महोत्सव में फाइन आर्ट्स से जुड़े लगभग 55 कलाकारों ने भाग लिया. जिनमें झारखंड की राजधानी रांची और अन्य जिलों से कलाकारों के अलावा वाराणसी, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों से आए कलाकार शामिल थे. झारखंड की प्रमुख कलाओं में सोहराय, कोहबर, जादो पटिया, उरांव पेंटिंग, मॉर्डन आर्ट और समकालीन चित्रकारी प्रमुख रही.

झारखंडी संस्कृति में सोहराई कला का विशेष महत्व है. हजारीबाग जिले के बादम से उत्पन्न इस कला को ब्रांड बनाने में बुल्लू इमाम और उनके परिवार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. सोहराई कला के माध्यम से प्रकृति और मानव समाज के संबंध को दर्शाने का प्रयास किया जा रहा है. अल्का इमाम, बेलनगिनी रोबर्ट मरियम, उषा पन्ना और प्रमीला किरण लकड़ा ने सोहराई कला को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

गौरवशाली परंपरा का इतिहास

महोत्सव में शांति निकेतन से आए मादी लिंडा ने अपनी अद्भुत कला प्रदर्शनी “जनी शिकार” के नाम से प्रस्तुत की, जो उरांव जनजाति की गौरवशाली परंपरा को दर्शाती है. यह चित्र महिलाओं की भागीदारी को प्रमुखता से दिखाता है और झारखंड में नारी शक्ति के उत्थान का प्रतीक माना जाता है. इस चित्र को महिलाओं ने विशेष रूप से सराहा है.

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