इस साल शरद पूर्णिमा पंचांग भेद होने के कारण 19 अक्टूबर 20 अक्टूबर दो दिन मनाया जाएगा। इस व्रत को आश्विन पूर्णिमा, कोजगारी पूर्णिमा और कौमुदी व्रत के नाम से भी जानते हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। इसे अमृत काल भी कहा जाता है। कहते हैं कि इस दिन महालक्ष्मी का जन्म हुआ था। मां लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थीं।
इस दिन श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महा रास रचाया था।साथ ही माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात के समय भ्रमण में निकलती है यह जानने के लिए कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है।उसी के अनुसार मां लक्ष्मी उन के घर पर ठहरती है।इसीलिए इस दिन सभी लोग जगते है।जिस से कि मां की कृपा उन पर बरसे और उनके घर से कभी भी लक्ष्मी न जाएं।
इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा या रासपूर्णिमा भी कहते हैं।हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को शरदपूर्णिमा पर्व के रूप में मनाया जाता है।इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं।
पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलहकलाओं से परिपूर्ण होता है। सनातन धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है।इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा का कहना है कि तिथि भेद वाली स्थिति में जब पूर्णिमा और प्रतिपदा एक ही दिन हो तब शरद पूर्णिमा पर्व मनाना चाहिए, व्रत और पर्वों की तिथि तय करने वाले ग्रंथ निर्णय सिंधु में भी ये ही लिखा है। पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर, मंगलवार को शाम 6.45 से शुरू होगी और बुधवार की शाम 7.37 तक रहेगी। इसलिए अश्विन महीने का शरद पूर्णिमा पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाना चाहिए। इस दिन सुबह स्नान-दान और पूजा-पाठ किया जाएगा और रात को चंद्रमा की रोशनी में खीर रखी जाएगी।

शरद पूर्णिमा पर ही बनता था सोमरस
आचार्य प्रणव मिश्रा ने बताया कि शरद पूर्णिमा पर औषधियों की ताकत और बढ़ जाती है, मान्यता है कि इस रात चंद्रमा की रोशनी में ही सोमलता नाम की औषधि का अर्क निकालकर रस बनाया जाता था जिसे सोमरस कहते हैं। लंकापति रावण शमान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत बरसता है।जिसके कारन इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँद की चांदनी में रखने का विधान है।

       शरदपूर्णिमा विधान-

इस दिन मनुष्य की प्रातः स्नान कर के इस दिन में विधि पुर्वक उपवारख ब्रह्मचर्य भाव से रहे।इस दिन ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी माँ लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित कर के भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायं काल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलाए।इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (३घंटे) बीत जाएँ, तब माता लक्ष्मी जी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्ति पूर्वक सात्विक ब्राह्मणों को

 इस प्रसादरूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही मांगलिक गीत गा कर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें।तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान कर के लक्ष्मी जी की स्वर्णमयी प्रतिमा ब्राम्हण को अर्पित करें।इस रात्रि की मध्य रात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं।

शरद पूर्णिमा पर खीर खाने का महत्व –

शरद पूर्णिमा की रात का अगर मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीतऋतु का आगमन होता है।शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा –
शास्त्रानुसार एक साहुकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनो पुत्रियाँ पुर्णिमा का व्रत रखती थी।परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी।परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का व्रत विधि पूर्वक किया तत्पश्चात उसे एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ।परन्तु शीघ्र ही वह मर गया। उसने आपने पुत्र को पीढ़े पर लिटा कर ऊपर से कपडा ढक दिया।फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया।बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे को छू गया।बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा।बडी बहन बोली-” तु मुझे कंलक लगाना चाहती थी।मेरे बैठने से यह मर जाता” तब छोटी बहन बोली यह तो पहले से मरा हुआ था।तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है।तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद उसने व्रत को पूर्ण रूप से करने का संकल्प लिया।
इस प्रकार प्रति वर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मी जी को संतुष्ट करने वाला है।इस से प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।

शरद पूर्णिमा को क्या करें और क्या न करें –
दशहरे से शरद पूर्णिमा तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं।प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा ने बताया कि नेत्रज्योति और सुंदरता बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 25 से 30 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें।

अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं।जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोगलगा कर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें।’फिर वह खीर खा लेना चाहिए।

इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।

शरद पूनम में दमे की बीमारी वालों के लिए वरदान का दिन है।
चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है।शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है।
अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है।जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर में समुन्दर में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्त धातुएँ हैं, सप्तरंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है।इस दिन काम-विकार भोग करने से विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और उपवास, व्रत तथा सत्संग किया जाय तो मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है।

आचार्य प्रणव मिश्रा
आचार्यकुलम, अरगोड़ा, राँची
8210075897

Share.
Exit mobile version