बिहार सहित पूरे देश में आज आंवला नवमी का त्योहार मनाया जा रहा है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी का व्रत रखा जाता है. इसे अक्षय नवमी भी कहते है. आंवला नवमी व्रत देव उठनी एकादशी व्रत से दो दिन पहले रखा जाता है. आज के दिन आंवला के पेड़ की पूजा की जाती है.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवला नवमी के व्रत से प्राप्त होने वाला फल और पुण्य अक्षय होता है, उसका कभी क्षय या ह्रास नहीं होता. इतना ही नहीं ये मान्यता भी है कि इसी दिन श्री कृष्ण ने कंस के विरुद्ध वृंदावन में घूमकर जनमत तैयार किया था. इसलिए इस दिन वृंदावन की परिक्रमा करने का भी विधान है.

इस दिन दान आदि करने से पुण्य इस जन्म में भी मिलता है और अगले जन्म में भी मिलता है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है. आंवले के पेड़ की पूजा करते समय परिवार की खुशहाली और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है. पूजा के बाद पेड़ के नीचे बैठकर भोजन किया जाता है और प्रसाद के रूप में आवंला खाया जाता है.

ऐसे करें पूजाः
आंवला के वृक्ष की पूजा के लिए हल्दी कुमकम आदि से पूजा करने के बाद वृक्ष में जल और कच्चा दूध अर्पित किया जाता है. इसके बाद आंवले के पेड़ की परिक्रमा की जाती है. तने में कच्चा सूत या मौली आठ बार लपेटी जाती है. पूजा करने के बाद कथा पढ़ी और सुनी जाती है. इस दिन पूजा समापन के बाद परिवार और मित्रों के साथ पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने का महत्व है.

क्या है शुभ मुहुर्तः
इस बार नवमी तिथि का प्रारंभ दिन शुक्रवार 12 नवंबर 2021 को सुबह 05.51 मिनट से होगा और शनिवार 13 नवंबर 2021 को सुबह 05.30 मिनट तक नवमी रहेगी. पूजन का सबसे शुभ समय शुक्रवार के दिन 06.50 मिनट से दोपहर 12.10 मिनट तक रहेगा. इस दिन रवि योग शुक्रवार को दोपहर 02.54 से 13 नवंबर को 06.14 सुबह तक रहेगा. इस अवधि में पूजन करके इस दिन का लाभ लिया जा सकता है.

आंवला का धार्मिक महत्व :

  • कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं. आंवला भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल है. इस दिन विष्णु सहित आंवला पेड़ की पूजा-अर्चना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.
  • इस दिन भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके वृंदावन की गलियों को छोड़कर मथुरा चले गए थे.
  • आंवले के वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास होता है. इसलिए इसकी पूजा का प्रचलन है. आंवले के वृक्ष की पूजा करने से देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
  • इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति भी होती है.
  • ऐसी मान्यता है कि आंवला पेड़ की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं.
  • अन्य दिनों की तुलना में आंवला नवमी पर किया गया दान पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है.
  • धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन स्नान, दान, यात्रा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.

अक्षय नवमी के संबंध में पौराणिक कथा है कि दक्षिण में स्थित विष्णुकांची राज्य के राजा जयसेन थे. इनके इकलौते पुत्र का नाम मुकुंद देव था. एक बार जंगल में शिकार खेलने के दौरान राजकुमार मुकुंद देव की नजर व्यापारी कनकाधिप की पुत्री किशोरी पर पड़ी. मुकुंद देव उसे देखते ही मोहित हो गए और उससे विवाह की इच्छा प्रकट की.

राजकुमार को किशोरी ने बताया कि उसके भाग्य में पति का सुख नहीं है. किशोरी को ज्योतिषी ने कहा है कि विवाह मंडप में बिजली गिरने से उसके वर की तत्काल मृत्यु हो जाएगी. लेकिन मुकुंद देव विवाह के प्रस्ताव पर अडिग रहे. मुकुंद देव ने अपने आराध्य देव सूर्य और किशोरी ने भगवान शंकर की आराधना की. भगवान शंकर ने किशोरी से भी सूर्य की आराधना करने को कहा.

भोलेशंकर के कहने के अनुसार किशोरी गंगा तट पर सूर्य आराधना करने लगी. तभी विलोपी नामक दैत्य किशोरी पर झपटा. ये देख सूर्य देव ने उसे वहीं भस्म कर दिया. किशोरी की अराधना से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने किशोरी से कहा कि कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले के वृक्ष के नीचे विवाह मंडप बनाकर मुकुंद देव से विवाह कर लो. इसके बाद दोनों ने मिलकर मंडप बनाया. एकदम से बादल घिर आए और बिजली चमकने लगी. जैसे ही आकाश से बिजली मंडप की ओर गिरने लगी, आंवले के वृक्ष ने उसे रोक लिया. इसके बाद से ही आंवले के वृक्ष की पूजा की जाने लगी.

Share.
Exit mobile version