पाकुड़: जिले में रथ यात्रा सदियों से चली आ रही है. परंपरा के अनुसार रविवार को यहां शाम पांच बजे रथ यात्रा निकाली गई. रथ पर सवार हो भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ प्रवास पर अपने मौसी के घर चले गए. भगवान जगन्नाथ की वैदिक मंत्रोच्चारण फूल, फल, चंदन, नवैध चढ़ाकर तथा धूप दीप दिखाकर भक्तों ने पूजा-अर्चना की. पूजा के दौरान भक्तों द्वारा भगवान को पान विशेष रूप से चढ़ाया गया क्योंकि आज के दिन पान चढ़ाने का विशेष महत्व है. पूजा-अर्चना के बाद पीतल का रथ रस्सी से भक्तों ने खींचना शुरू किया. नगर भ्रमण करते हुए प्रभु का रथ मौसीबाड़ी पहुंचा. इसके बाद भगवान जगन्नाथ को विभिन्न प्रकार के भोग लगे. रथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. चारों तरफ माहौल भक्तिमय हो गया.

पश्चिम बंगाल के वीरभूम व मुर्शिदाबाद जिले के अलावा तीनपहाड़, कोटालपोखर, बरहड़वा तथा पाकुड़ जिले के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों से श्रद्धालु अहले सुबह से ही जुटने शुरू हो गए थे. सुदूर गांवों से बड़ी संख्या में आदिवासी मेले में शरीक हुए. बताते हैं मेले का आदिवासी समुदाय में भी एक अलग महत्व है. झुंड में ढोल, नगाड़े और मांदरों के साथ आदिवासी समाज भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल होते हैं. चूंकि पाकुड़ पश्चिम बंगाल के सीमा पर बसा है. इसलिए बंगाल के सुदूर इलाकों से भी श्रद्धालु आते हैं. बता दें कि रथ मेला राजा पृथ्वी चंद्र शाही के समय से बंगला सन् 1222 से ही लगातार चलता आ रहा है. इसी क्रम में कालिकापुर में भी रथ यात्रा निकाली गई. रथ यात्रा के दौरान दंडाधिकारी, पुलिस पदाधिकारी सहित पुलिस बल गश्ती लगा रही थी. इसके अलावा सुरक्षा को ध्यान में रखकर मेला परिसर में सुरक्षा बल तैनात थे.

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