सत्य शरण मिश्रा

रांची : भाजपा ने झारखंड में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियां तेज कर दी है. प्रदेश में भाजपा को जीताने की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के सीएम हिमंता विस्वा सरमा के कंधे पर डाल दिया गया है. अब झारखंड का कौन नेता विधानसभा चुनाव में पार्टी का खेवनहार बनेगा उसकी तलाश जारी है. झारखंड की सत्ता का रास्ता प्रदेश के 28 आदिवासी सुरक्षित सीटों से होकर गुजरता है. 2019 में भाजपा 28 में से सिर्फ दो सीटें ही जीत पाई थी. भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को इसी उम्मीद से लोकसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी थी कि वे हारी हुई दो एसटी सीटें चाईबासा और राजहमल में भाजपा को जीत दिलायेंगे, लेकिन वे इन सीटों पर जीत तो नहीं दिला सके, उल्टे भाजपा जीती हुई खूंटी, दुमका और लोहरदगा सीट भी गंवा बैठी.

पांचों आदिवासी सुरक्षित सीट गंवाने के बाद केंद्रीय नेतृत्व का बाबूलाल मरांडी पर भरोसा कहीं न कहीं कम जरूर हुआ है. प्रदेश संगठन में भी बाबूलाल की धाक कम हुई है. ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड में बाबूलाल मरांडी की जगह कोई नया आदिवासी चेहरा ला सकती है. अगर ऐसा हुआ तो प्रदेश का भाजपा का नया चेहरा अर्जुन मुंडा होंगे. खूंटी से लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी अर्जुन मुंडा का कद छोटा नहीं हुआ है. मंगलवार को दिल्ली में हुई झारखंड भाजपा के कोर कमेटी की बैठक में भी अर्जुन मुंडा मौजूद थे. उम्मीद जताई जा रही है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा को बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है. उम्मीद यह भी है कि उन्हें मुख्यमंत्री पद का भी चेहरा बनाया जा सकता है.

संगठन में बाबूलाल के खिलाफ आवाज उठना शुरू हो गया है

झारखंड में लोकसभा चुनाव की समीक्षा बैठकों के बाद जिस तरह से भाजपा का अंतर्कलह सतह पर आ गया है उससे बाबूलाल की परेशानी बढती दिख रही है. पहले दुमका से चुनाव हारने वाली प्रत्याशी सीता सोरेन ने पार्टी के विधायक, पूर्व सांसद और पूर्व मंत्री पर भीतरघात करने का आरोप लगाया. उसके बाद उन्होंने खुलकर प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल खड़े कर दिये हैं.

उधर देवघर के विधायक ने भी गोड्डा सांसद पर अपने गुंडों से गाली-गलौच और मारपीट करवाने का आरोप लगाया है. भाजपा में इस तरह की चीजें कई सालों से नहीं देखी गई थी. इन चीजों के सामने आने से संगठन के अंदर भी बाबूलाल मरांडी के खिलाफ आवाज उठनी शुरू हो गई है. उधर अर्जुन मुंडा की छवि संगठन के अंदर अभी भी पहले जैसी ही है. कार्यकर्ता कह रहे हैं कि अगर अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ी होती तो आज पांचों सीटों पर हार का मुंह नहीं देखना पड़ता.

रघुवर की तरह बाबूलाल भी कहीं के राज्यपाल बनाकर कर दिये जाएंगे विदा ?

पिछले इतिहास को देखें तो अबतक भाजपा ने झारखंड के जिन नेताओं पर भरोसा किया वे उस भरोसो पर खरे नहीं उतरे. 2019 के लोकसभा चुनाव में तात्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पर्दे के पीछे से प्रदेश में भाजपा का मोर्चा संभाला था. भाजपा उसमें सफल भी हुई, लेकिन लोकसभा चुनाव में रघुवर पर भरोसा कर भाजपा ने झारखंड में अपनी सरकार गंवा दी. रघुवर दास भी अपनी सीट से चुनाव हार गये. जिन लोगों के रघुवर पार्टी में लेकर आये थे उनमें से अधिकांश चुनाव हार गये.

कोल्हान प्रमंडल की सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा का सफाया हो गया. संथाल परगना में भी आदिवासी सुरक्षित कई सीटिंग सीटें भाजपा के हाथों से चली गई. भाजपा ने समीक्षा में पाया कि रघुवर दास इस हार के पीछे की बड़ी वजह हैं. इसके बाद भाजपा ने उन्हें प्रदेश की राजनीति से दूर करते हुए ओडिशा का राज्यपाल बना दिया. अब कहीं ऐसा न हो कि विधानसभा चुनाव से पहले रघुवर की तरह बाबूलाल मरांडी भी किसी प्रदेश के राज्यपाल बनाकर भेज दिये जाएं और अर्जुन मुंडा मोर्चा मोर्चा संभाल लें.

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