रांची। बाबूलाल मरांडी को बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के साथ ही अब पार्टी में विधायक दल के नेता को लेकर मंथन शुरू हो चुका है। विधायक दल के नेता का नाम पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को तय करना है. इसमें संगठन प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष की भी सहमति ली जाएगी. बीजेपी ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए अपनी गोटी बैठाना शुरू कर दिया है. करीब आठ माह बाद लोकसभा और उसके छह माह बाद विधानसभा चुनाव होना है.
इसलिए प्रदेश अध्यक्ष के बाद विधायक दल के नेता का चयन भी दोनों चुनावों को सामने रखकर ही किया जाएगा. दरअसल, बीजेपी का प्रयास हो सकता है कि ऐसे व्यक्ति को मौका मिले, जो लंबे समय तक नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता रखता हो. बीजेपी के विधायकों में अगर युवा नेताओं की बात की जाए तो सामान्य वर्ग से आने वाले अनंत ओझा, ओबीसी से विरंची नारायण और एससी वर्ग से अमर बाउरी के नाम प्रमुख हैं. अगर बीजेपी सीनियर नेताओं को मौका देती है तब इसमें सीपी सिंह और नीलकंठ सिंह मुंडा रेस में हैं.
अनंत ओझा
संथाल में झामुमो की पकड़ ज्यादा मजबूत होने पर भी लगातार दो बार विधानसभा में पहुंचे. कार्यकर्ताओं में अच्छी पकड़, तेज तर्रार युवा नेता व विधानसभा में मुखर वक्ता के रूप में पहचान. दो बार भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश बीजेपी के भी पदाधिकारी रहे. लेकिन इनकी कमजोरी की बात करें तो पार्टी में इनसे कई सीनियर नेता हैं, ये अनुभव के मामले में कई विधायकों से पीछे हैं.
विरंची नारायण
तेज तर्रार युवा नेता, संगठन में पकड़, विधानसभा में बीजेपी के मुखर नेता की पहचान, सोशल इंजीनियरिंग के हिसाब से ओबीसी चेहरा, किशोर अवस्था से ही आरएसएस से जुड़े है. प्रदेश बीजेपी के मंत्री और उपाध्यक्ष रहे. लगातार दूसरी बार विधानसभा पहुंचे. लेकिन कमजोरी की बात करें तो वर्तमान में मुख्य सचेतक की जिम्मेदारी, कई सीनियर विधायकों के मुकाबले कम अनुभव है.
अमर बाउरी
युवा और तेज तर्रार नेता के रूप में पहचान, विधानसभा में सत्ता पक्ष को घेरने की क्षमता और बेबाकी से अपनी बात रखना. सोशल इंजीनियरिंग के हिसाब से बीजेपी में प्रमुख एससी चेहरा हैं. लेकिन इनकी कमजोरी के बारे में बात करें तो झाविमो से आए दूसरे नेता, बाबूलाल के बाद नेता विधायक दल बनाना थोड़ा कठिन है.
सीपी सिंह
लंबा राजनीतिक अनुभव, पिछले 43 साल से बीजेपी में सक्रिय. 1996 से लगातार छठी बार रांची के विधायक बने. झारखंड विधानसभा में स्पीकर का पद भी संभाला. मंत्री पद पर भी रहे. लेकिन कमजोरी की बात करें तो अब लंबी रेस में पार्टी द्वारा शामिल करने पर संशय, इसका कारण इनकी बढ़ती उम्र है.
नीलकंठ मुंडा
खूंटी से पांचवीं बार विधानसभा का चुनाव जीतना. बीजेपी के प्रमुख आदिवासी चेहरों में से एक, पार्टी के भीतर सर्वमान्य नेता, मंत्री पद का बेहतर अनुभव, विधानसभा में बेहतर परफॉर्मेंस, लेकिन इनकी कमजोरी की बात करें तो प्रदेश अध्यक्ष के बाद नेता विधायक दल पद पर भी आदिवासी चेहरा लाने पर संशय है.