रांची : झारखंड में आदिवासी समुदाय से बीजेपी में महिला वक्ताओं की कमी जगजाहिर है. ऐसे में लोकसभा चुनाव-2024 में बीजेपी कार्यकर्ता डॉ. आशा लकड़ा की कमी को महसूस कर रहे हैं. आशा लकड़ा पूरे झारखंड राज्य और खासकर रांची, गुमला, लोहरदगा, खूंटी जिलों में एक चमकता हुआ नाम रही हैं. उन्हें एक उभरते सितारे की तरह देखा जा रहा था. आशा लकड़ा का भाषण, सदरी भाषा, हिंदी भाषा और कुड़ुख भाषा में प्रवाह मंत्रमुग्ध करने वाला होता था. तालियों की गड़गड़ाहट और बहादुरी पार्टी भाजपा कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने के लिए काफी थी.
रांची और लोहरदगा की जनता ढ़ूंढ़ रही ‘आशा’ का चेहरा
लोहरदगा और रांची लोकसभा क्षेत्र की जनता आज भी डॉ आशा लकड़ा का इंतजार करती नजर आयेगी. उनकी अनुपस्थिति न केवल भाजपा के लिए बल्कि उन लोगों के लिए भी क्षति है जिनका वह प्रतिनिधित्व करती हैं. आशा लकड़ा अखिल भारती विद्यार्थी परिषद के लोगों और आम लोगों के लिए हमेशा सुलभ भी रही हैं.
ABVP की सक्रिय सदस्य हर मोर्चे पर रही तैनात, दो बार रहीं रांची की मेयर
लोकसभा चुनाव के दौरान डॉ. आशा लाकड़ा को बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के लोकसभा सह प्रभारी की जिम्मेदारी भी दी थी. इससे उनके मजबूत नेतृत्व कौशल और चुनौतीपूर्ण कार्यों को संभालने की क्षमता का पता चला. अपने राजनीतिक करियर में वह दो बार रांची की मेयर रहीं और साथ में रांची विश्वविद्यालय सिंडिकेट की सदस्य भी. उन्हें भाजपा राष्ट्रीय समिति के महासम्मेलन का संचालन करने का सम्मान मिला, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जैसी उल्लेखनीय हस्तियां मौजूद थीं. इससे न केवल पार्टी में उनकी स्थिति उजागर हुई बल्कि एक सक्षम संगठनकर्ता और नेता के रूप में उनके कौशल का भी पता चला.
झारखंड की राजनीति में छोड़ा प्रभाव
झारखंड की राजनीतिक परिदृश्य पर डॉ. आशा लकड़ा ने अमिट प्रभाव छोड़ा है. सार्वजनिक सेवा के प्रति उनके समर्पण और जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों से जुड़ने की क्षमता ने उन्हें झारखंडियों के दिलों में एक विशेष स्थान दिलाया है. एक प्रतिभाशाली आदिवासी नेता के रूप में उनकी व्यापक लोकप्रियता और पहचान के बावजूद, चुनाव से पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्य के रूप में डॉ. आशा लकड़ा की अचानक नियुक्ति सवाल उठाती है कि यह एक सजा है या प्रोन्नति. अगर झारखंड में बीजेपी कुछ सीटें हारती है तो उन्हें आत्ममंथन में आशा लकड़ा की कमी जरूर महसूस होगी. समाज के सभी वर्गों में एक लोकप्रिय युवा आदिवासी नेत्री के रूप में, उन्होंने एबीवीपी के युवाओं का मार्गदर्शन करने और विभिन्न राजनीतिक कार्यक्रमों और सामाजिक पहलों में भाग लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी मौजूदगी की कमी झारखंड की पूरी बीजेपी पार्टी को जरूर महसूस होगी.
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