बोकारो : आज रे करम गोसाईं घरे द्वारे रे, काल रे कांस नदी पारे रे… आवते भादर मास आनबो घुराय…, दे हो, दे हो करम गोसाईं दे हो आशीष…करम गीत से अखड़ा समेत पूरा ग्रामीण इलाका गूंज रहा था. मौका था भाई बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक करम पर्व का. जिले में करम डाली की पूजा-अर्चना कर हर्षोल्लास के साथ करमा पर्व मनाया गया. ग्रामीण क्षेत्रों में घर के बने पकवान अक्षत व धूप से करम डाली की पूजा-अर्चना कर करमा पर्व मनाया. दर्जनों अखाड़ों में महिलाओं व युवतियों ने मांदर की थाप पर लोकगीतों पर पारंपरिक नृत्य किया.
भाई की लंबी उम्र की कामना
महिलाओं व युवतियों ने भाइयों की लंबी उम्र की कामना को लेकर उपवास रख करमा पूजा की. देर रात में अखड़ा में करम डाली गाड़ कर बहनों ने पूजा की, जिसमें बहनों के द्वारा भाई को चंदन लगा कर पुष्प वर्षा के साथ में खीरा ओकरी देकर भाई की लम्बी उम्र की कामना की गई.
बहनों ने रखा निर्जला उपवास
भाई-बहन के स्नेह और प्रेम की निशानी के रूप में भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को हर साल यह पर्व मनाया जाता है. सात दिनों से चल रहे इस पर्व के अंतिम दिन बहनों ने निर्जला उपवास कर और शाम को आंगन में करम पौधे की डाली गाड़कर पूजा अर्चना की और बड़ो से आशीर्वाद लिया. इस दौरान करमा गीत से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा. कहा जाता है कि करमा पूजा भाई- बहन की अटूट प्रेम का प्रतीक है. करमा पर्व झारखंड वासियों की पहचान है. यह प्रकृति से जुड़ा है.
क्या है पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओ के अनुसार, करमा और धरमा नामक दो भाइयों ने अपनी बहन की रक्षा के लिए जान को दांव पर लगा दिया था. दोनों भाई गरीब थे और उनकी बहन भगवान से हमेशा सुख-समृद्धि की कामना करते हुए तप करती थी. बहन के तप के बल पर ही दोनों भाइयों के घर में सुख-समृद्धि आई थी. इस एहसान के फलस्वरूप दोनों भाइयों ने दुश्मनों से बहन की रक्षा करने के लिए जान तक गंवा दी थी. इसी के बाद से इस पर्व को मनाने की परंपरा शुरू हुई थी.