हजारीबाग : नवरात्र का समय चल रहा है और ऐसे में हर एक माता की मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. दरअसल इस आधुनिक युग में एक ऐसा मंदिर जहां भगवान की मूर्ति नहीं बल्कि श्रृंगार सिंदूर और पिंड की पूजा की जाती है. हजारीबाग जिला मुख्यालय से महज 17 किलोमीटर दूर ईचाक का 354 वर्ष प्राचीन बुढ़िया माता मंदिर में प्रतिमा की नहीं बल्कि मिट्टी और सिंदूर के पिंड की पूजा की जाती है. यहां मिट्टी के पिंड पर सिंदूर का लेप लगाया जाता है.
मान्यता है कि माता लोगों की मन्नतें पूरी करती हैं. पूजा अर्चना के लिए झारखंड, बिहार, बंगाल के अलावे कई राज्य से श्रद्धालु इस मंदिर परिसर में पूजा के लिए पहुंचते हैं. मंदिर की मान्यता है कि जिसने भी यहां झोली फैलाया है मां उसकी मुरादें पूरी करती हैं. खासकर नवरात्र और सावन पूर्णिमा में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और सप्तमी के दिन मां को सिंदूर चढ़ाया जाता है.
मंदिर के पुजारी अमरनाथ पांडेय ने बताया कि पूर्वज बताते थे सन् 1668 ई. में इलाके में हैजा महामारी फैली थी. उस वक्त इस बीमारी का इलाज नहीं था. महामारी से लोग मर रहे थे. इसी काल में एक चरवाहा ने जंगल में सिंदूरी रंग की मिट्टी देखी, जिससे कुछ आवाज आ रही थी. घर लौटने पर गांव में इसकी चर्चा की. दूसरे दिन गांव के लोग वहां गए. वहां पहुंचकर सबने शांति महसूस किया. तब ग्रामीणों ने वहां पूजा शुरू कर दिए. फिर वहां लोगों ने मिट्टी का मंदिर बना डाला और पूजा जारी रखी. इसके बाद गांव में लोग बीमारी से मुक्त होने लगे. लोगों की आस्था बढ़ते गई और लोग देवी दुर्गा की पूजा करने लगे. आज भी बुढ़िया माता मंदिर के गर्भ गृह में वही सिंदूरी मिट्टी का पिंड है.
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