झारखंड

सिस्टम का फेल्योर : दुनिया में आने से पहले गर्भ में ही शिशु ने तोड़ा दम, प्रसूता की भी मुश्किल से बची जान

बोकारो : जाने कब बदलेगी बिरहोर डेरा गांव की तकदीर, सड़क नहीं होने के कारण नहीं पहुंच पाई एंबुलेंस. समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने से जन्म से पूर्व गर्भ में ही शिशु की हो गई मौत. मुश्किल से बची प्रसूता की जान. अब तो विकास की बाट जोहते-जोहते लोगों की आंखें भी पथरा गई हैं. मामला बोकारो जिला के गोमिया प्रखंड के बिरहोर डेरा गांव का है.

क्या है मामला

जंगल, नदी, पहाड़ से घिरे बिरहोर डेरा गांव में पक्की सड़क नहीं रहने के कारण गर्भवती आदिवासी महिला की जान पर बन आई. समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका, अंततः दुनिया में पहुंचने से पूर्व गर्भ में ही शिशु की मौत हो गई. जैसे-तैसे महिला को बचाया जा सका. जिसके लिए गांव की महिलाएं प्रशंसा की पात्र हैं. जिन्होंने अस्पताल पहुंचाने के लिए गर्भवती को खटिया में लादकर जंगल के रास्ते पहले रेलवे ब्रिज पार किया फिर नदी की बहती धारा को. लेकिन जब तक अस्पताल पहुंचते जन्म से पूर्व गर्भ में ही शिशु ने दम तोड़ दिया. महिला की स्थिति भी गंभीर हो गई, जैसे तैसे निजी अस्पताल के डॉक्टर ने जान बचाई. अभी भी महिला का इलाज उसी अस्पताल में चल रहा है. महिला का पति प्रवासी मजदूर है और अभी कमाने के लिए मुंबई गया हुआ है.

मुश्किल से बची प्रसूता की जान

गर्भावधि पूरी होने पर महिला को एकाएक लेबर पेन शुरू हुआ. चारों ओर जंगल, पहाड़ और नदी से घिरे बिरहोर डेरा गांव में पहुंचने के लिए आज भी सड़क नहीं है. 108 एंबुलेंस को सूचना दी लेकिन सड़क रोड़ा बन गया, आखिर एंबुलेंस पहुंचे भी तो कैसे. जैसे तैसे एक रिश्तेदार को सूचना दी गई, जो अपनी निजी कार लेकर नदी किनारे टूटी झरना गांव पहुंचा तब जाकर महिला को अस्पताल पहुंचाया जा सका. लेकिन जब प्रसव के लिए ले जाया गया तो बच्चा उल्टा जन्म ले रहा था, स्थिति काफी खराब थी और उसका आधा शरीर ही बाहर निकल चुका था. देखते देखते बच्चे की जान चली गई. जिसके बाद महिला की भी स्थिति काफी बिगड़ गई, जैसे तैसे उसे बचाया गया.

कछुआ की चाल चल रहा पुल निर्माण

हमलोगों ने समय-समय पर बिरहोर डेरा गांव की समस्याओं को लगातार दिखाया है. अधिकारियों ने खबरों को संज्ञान भी लिया विकास से गांव को जोड़ने के लिए नदी में पुल निर्माण का टेंडर कराया. गिरिडीह सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी ने दो वर्ष पूर्व पुल का शिलान्यास भी किया, लेकिन निर्माण कार्य की गति कछुआ से भी धीमी चल रही है. संवेदक की मनमानी और विभागीय अधिकारियों की उदासीनता ने गांव की समस्या को लगातार बढ़ा रही है. समय पर अगर पुल का निर्माण हो गया रहता तो शायद आज यह दिन नहीं देखना पड़ता. लेकिन किसी की जान जाती है तो चली जाए इसकी चिंता संवेदक व विभागीय अधिकारी क्यूं करे.

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