Johar Live Desk : 17 मार्च 1962 को हरियाणा के करनाल में जन्मी कल्पना चावला भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक प्रेरणा का प्रतीक बन गईं. बचपन से ही आत्मविश्वासी रही कल्पना, अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा टैगोर बाल निकेतन स्कूल से की और फिर पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बैचलर्स की डिग्री प्राप्त की. 1976 में वह एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करने वाली अकेली लड़की थीं. इसके बाद, 1982 में उन्होंने अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास से एयरोनॉटिकल स्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री की.
जीन पियरे हैरिसन से की शादी
कल्पना की जिंदगी का एक और अहम मोड़ 1983 में आया जब उन्होंने जीन पियरे हैरिसन से शादी की. इसके बाद, 1988 में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर से एयरो स्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की और NASA के साथ काम करना शुरू किया. 1991 में उन्हें अमेरिकी नागरिकता प्राप्त हुई और 1994 में उन्हें NASA के अंतरिक्ष यात्री समूह में शामिल किया गया.
कल्पना चावला ने 1997 में अपने पहले स्पेस मिशन STS-87 के तहत कोलंबिया स्पेस शटल में उड़ान भरी. इस मिशन के दौरान उन्होंने 15 दिन और 16 घंटे अंतरिक्ष में बिताए. इसके बाद, उन्हें 2003 में दूसरे स्पेस मिशन STS-107 के लिए चुना गया. लेकिन, दुर्भाग्यवश, यह मिशन उनके जीवन का आखिरी मिशन बन गया.
1 फरवरी 2003 को, जब कोलंबिया स्पेस शटल धरती के वायुमंडल में प्रवेश कर रहा था, तब यह शटल अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला और उनके छह साथियों के साथ दुर्घटनाग्रस्त हो गया. शटल के बाहरी टैंक से टूटकर फोम का एक टुकड़ा पंख पर लग गया था, जिसके परिणामस्वरूप शटल में विस्फोट हुआ और अंतरिक्ष यात्री शहीद हो गए. इस हादसे के बाद, NASA ने अपनी स्पेस शटल उड़ानों को 2 साल से अधिक समय के लिए निलंबित कर दिया.
10 साल बाद, 2013 में NASA के प्रोग्राम मैनेजर Wayne Hale ने यह खुलासा किया कि शटल की उड़ान के दौरान ही यह तय हो गया था कि अंतरिक्ष यात्री धरती पर वापस नहीं लौट पाएंगे. इस समय उनकी जान को खतरा था, लेकिन उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गई. मिशन पर गए अंतरिक्ष यात्री बिना किसी चिंता के अपने काम में लगे रहे.
कल्पना चावला की असामयिक मौत के बाद भारत सरकार ने उनकी असाधारण उपलब्धियों को सम्मानित करते हुए, ISRO के मौसम उपग्रहों का नाम “कल्पना” रखा. इसके अलावा, NASA ने उनके सम्मान में एक सूपर कंप्यूटर और मंगल ग्रह पर एक पहाड़ी का नाम भी उनके नाम पर रखा. कल्पना चावला की प्रेरक यात्रा और उनके अद्वितीय योगदान ने ना सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में एक अमिट छाप छोड़ी है. उनके साहस, समर्पण और संघर्ष की कहानी आज भी हमें न केवल अपने सपनों को पूरा करने की प्रेरणा देती है. बल्कि यह भी बताती है कि कभी हार नहीं माननी चाहिए.
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