Johar live desk: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI के बढ़ते प्रभाव ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या यह हमारी बौद्धिक क्षमता को कम कर रहा है? हाल ही में, क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स डेबोरा ब्राउन और पीटर एलर्टन ने एक स्टडी में बताया है कि एआई के बढ़ते उपयोग से हमारी विश्लेषणात्मक सोच कम हो रही है।
इस स्टडी में पाया गया है कि एआई के लगातार उपयोग और विश्लेषणात्मक सोच की क्षमताओं के बीच महत्वपूर्ण नकारात्मक सह-संबंध हैं। यहां तक कि एआई के उपयोग से हमारा आईक्यू (IQ) लेवल भी कम हो रहा है। हम में से ज्यादातर लोग एक लिमिट तक ही कुछ सोच पाते हैं और हमारी निर्भरता डिवाइसेज पर बढ़ रही है।
हम अपने फोन का उपयोग करके अपने दैनिक जीवन को आसान बना सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी सोच को कम कर रहे हैं। लेकिन जब हम एआई का उपयोग करके अपने काम को आसान बनाने की कोशिश करते हैं, तो हम अपनी विश्लेषणात्मक सोच को कम कर सकते हैं।
इस स्टडी में 319 नॉलेज बेस्ड लोगों के साथ सर्वे किया गया, जिन्होंने AI की मदद से किए गए 936 कार्यों पर चर्चा की। दिलचस्प बात यह है कि स्टडी में पाया गया कि यूजर्स काम करते समय विश्लेषणात्मक सोच का कम उपयोग करते हैं।
यह सवाल उठता है कि क्या हम अपने जीवन को आसान बनाने के लिए इन डिवाइसेज पर निर्भर रहकर खुद को अधिक बुद्धिमान मूर्ख बना रहे हैं? क्या हम अपनी वर्क स्किल बढ़ाने के चक्कर में अज्ञानता के और भी करीब जा रहे हैं?इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। लेकिन यह स्पष्ट है कि एआई के बढ़ते प्रभाव ने हमारी सोच और विश्लेषणात्मक क्षमताओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में फ्रांस की राजधानी पेरिस में आयोजित एआई समिट में कहा था कि एआई हमारी जिंदगी को बदल रहा है। उन्होंने एआई के पॉजिटिव पहलुओं के बारे में भी बताया था और दुनियाभर के लीडर्स को एआई को लेकर रेगुलेशन बनाने की अपील की थी।