जामताड़ा। जामताड़ा को धनबाद जिले के निरसा से जोड़ने वाली निर्माणाधीन बरबेंदिया पुल निर्माण कार्य में ग्रामीणों के हस्तक्षेप के कारण कार्य प्रभावित होता दिख रहा है, जो की बहुत ही चिंता का विषय है। इसके चलते बराकर नदी पर सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना बिरगांव बरबेंदिया पुल निर्माण कार्य की रफ्तार धीमी हो गई है। स्थानीय लोगों के विरोध के कारण नदी में मिट्टी भराई कार्य बाधित हो गया है। जिसके वजह से पीलर ढालने का काम आगे नहीं बढ़ रहा है। नदी में जलस्तर ज्यादा होने के कारण पिलर ढलाई के लिए मिट्टी भराई करने की आवश्यकता है, जो ग्रामीणों के विरोध के कारण नहीं हो पा रहा है। जानकारी के अनुसार मिट्टी भराई का काम, मटेरियल एवं मशीनरी के सप्लाई स्थानीय लोगों द्वारा किए जाने की जिद की जा रही है जिस पर कार्यकारी एजेंसी सहमत नहीं हो रहा है। प्रोजेक्ट मैनेजर की माने तो स्थानीय लोगों पर इन सारे कार्यों को छोड़ देने का मतलब गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ करना है। एजेंसी की ओर से ग्रामीणों का समझने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन ग्रामीण मानने को तैयार नहीं हैं और मिट्टी भराई का कार्य रूक गया है। प्रोजेक्ट मैनेजर जगदेव सिंह ने बताया कि विभाग और प्रशासन को इस संदर्भ में मौखिक रूप से जानकारी दे दी गई है। अगर ग्रामीणों से सहमति बन जाती है तो काम आगे बढ़ेगा अन्यथा इस संदर्भ में लिखित रूप से प्रशासन एवं विभाग को जानकारी दी जाएगी। बता दें कि इसी बराकर नदी हादसे में जामताड़ा के 14 लोगों की जान चली गई थी और यह मामला झारखंड विधानसभा में भी गूंजा था। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बरबेंदिया पुल निर्माण की घोषणा की थी। उनके पहल पर कार्य आगे बढ़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने योजना का शिलान्यास किया। इस योजना के पूर्ण हो जाने से धनबाद जिला से जामताड़ा जिला की कनेक्टिविटी आसान हो जाएगी और रोजी रोजगार के तथा विकास के नए आयाम खुलेंगे। इस पुल से लोगों को काफी उम्मीद और अपेक्षाएं हैं। देखा जाए तो जो ग्रामीण निर्माण कार्य के दौरान रोजगार को लेकर विरोध कर रहे हैं सबसे ज्यादा फायदा उन्हीं को होने वाला है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि पुल निर्माण की स्वीकृति का श्रेय लेने वाले जितने भी सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक दल के कार्यकर्ता व स्थानीय जनप्रतिनिधि थे, आज जब कार्य प्रारंभ हुआ है तो ऐसे विवाद को सुलझाने की दिशा में कोई भी जनप्रतिनिधि या सामाजिक कार्यकर्ता या फिर राजनीतिक दल के लोग पहल नहीं कर रहे हैं। जिस तरीके से एजेंसी और स्थानीय लोगों के बीच कार्य को लेकर विवाद गहरा रहा है उससे योजना के प्रभावित होने की संभावना बढ़ रही है। शरद रहेगी कि इससे पूर्व भी कई सौ करोड़ की लागत से पुल निर्माण का कार्य आरंभ किया गया था जो पीरियड है जाने के कारण अधर में लटक गया और करीब एक दशक से यह आधा अधूरा पुल सरकार और प्रशासन को मुंह चढ़ता हुआ प्रतीत होता है।